Wednesday 17 August 2016

हदीसी हादसे 23


हदीसी हादसे 


बुखारी ६६५ 

मुहम्मद नमाज़ से फारिग होने के बाद लोगों से पूछा करते थे कि अगर उन्होंने कोई ख़्वाब देखा हो कि वह उसकी ताबीर बतला दें. रोज़ की उनकी बकवास सुनते सुनते लोग बेजार हो गए तो एक दिन ऐसा आया कि किसी ने कोई ख्वाब ही नहीं देखा. इस पर मुहम्मद ने कहा मैं ने एक ख़्वाब देखा सुनो - - - 
1-मैंने देखा कि एक मुक़द्दस ज़मीन की तरफ़ मुझे ले जाया गया, ले जाने वाले दो थे. मैं ने देखा कि एक शख्स हाथ में ज़मबूर लिए दूसरे का कल्ला चीर रहा था, ज़म्बूर मुंह से निकलते ही उसका कल्ला सालिम हो जाता तब वह डूसरे गलफरे को चीरता है . . .
पूछा माजरा क्या है? 
दोनों ने कहा आगे चलो. 
२- आगे मैं ने देखा कि एक चित लेटे आदमी पर दूसरा पत्थर मारता है कि सर फट जाता है, वह पत्थर उठाने जाता है कि उसका सर फिर से सलिम हो जाता है. 
मैंने माजरा जानना चाह तो कहा आगे चलो. 
३-आगे मैंने देखा कि दो मर्द और औरत नंगे एक तंदूर में जल रहे हैं. तंदूर जब उफनता है तो दोनों ऊपर तक आ जाते हैं मगर बाहर नहीं निकल पाते और फिर नीचे चले जाते हैं. मैंने माजरा जानना चाहा तो कहा आगे चलो. 
४- आगे मैंने देखा कि एक शख्स नहर में फंसा हुवा है और नहर के दोनों कनारे पर दो लोग पत्थर लिए खड़े हैं. वह एक कनारे पर निकलने को जाता है तो उस पर पहला पथराव करता है और दूसरे कनारे पर जाता है तो दूसरा उस पर पथराव कर के वापस कर देता है. मैंने उन से इसका माजरा पूछा तो वह लोग मुझे एक शानदार बाग में ले गए जिसमे एक बूढा बैठा था और बाग में एक आली शान माकन था ,फिर दूसरा माकन था, जिसमें बच्चे जवान और बूढ़े बकसरत भरे हुए है, मेरे तजस्सुस पर उन दोनों ने कहा 
१- पहला जिसका कल्ला चीरा जा रहा था वह झूटी बातों की खबर फैलता था .
२- दूसरा जिसे ज़ख़्मी किया जा रह था, वह कुरान पाकर भी उसकी तिलावत नहीं करता था.
३- जिन जोड़े को आपने तंदूर में देखा, वह दोनों ज़िना कार थे. 
४-जो शख्स नाहर में फंसा था वह सूद खोर था.
इन चरों को क़यामत तक यूं ही सज़ा जरी रहेगी.
बाग में बैठे ज़ईफ हज़रात इब्राहीम अलेहिस सलाम थे. 
मकानों में उनके जन्नती औलादें थीं और दूसरे में शहीद ए जिहाद थे.
बाद में दोनों ने बतलाया हम लोग जिब्रील और मीकाईल हैं.
उन्हों ने ऊपर अब्र पर इशारा करके बतलाया कि ऊपर आप का मकान है, 
मैने कहा तो मुझे मेरे माकन ले चलो तो उन लोगों ने कहा अभी नहीं अभी आपकी उम्र बाकी है.
यह हदीस मुहम्मद की मन गढ़ंत है. सबसे पहले इनका क़ल्ला चीरा जाना था, मगर मोहताज अवाम की इतनी हिम्मत कहाँ कि वह झूठे पैगाबर के खिलाफ लब कुशाई करते .
बल्कि इन चारो सज़ाओं के मुजरिम खुद मुहमद होते हैं. 
अपने बहू के साथ ज़िना करते, बेटे ने देख लिया था, फिर उसे बगैर निकाह के ज़िन्दगी भर रखैल बना कर रखा, जिसकी तबलीग ओलिमा उनके हक़ में करते रहे, ये उनकी मजबूरी है कि मुसलमान यही सुनना चाहते है.
इतना बड़ा ख्वाब जो दूसरे दिन इस तरह बयान किया जय? इसकी पेश बंदी बतलाती है कि यह दिन में मुहम्मद ने खुली आँखों से देखा. 
मुसलमानों! 
क्या तुम कहाँ हो, क्या तुम्हारा रहनुमा इतना झूठा हो सकता है? 



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