Tuesday 9 August 2016

बांग-ए-दरा 58


बांग-ए-दरा

 मुसलामानों  का मुस्तकबिल

भारत के मुस्तकबिल करीब में मुसलामानों की हैसियत बहुत ही तशवीश नाक होने का अंदेशा है. अभी फ़िलहाल जो रवादारी बराए जम्हूरियत बक़रार है, बहुत दिन चलने वाली नहीं. इनकी हैसियत बरक़रार रखने में वह हस्तियाँ है जिनको इस्लाम मुसलमान मानता ही नहीं और उन पर मुल्ला फतवे की तीर चलाते रहते हैं. उनमे मिसाल के तौर पर डा. ए पी. जे अब्दुल कलाम, तिजारत में अज़ीम प्रेम जी, सिप्ला के हमीद साहब वगैरा ,
फ़िल्मी दुन्या के ए. आर. रहमान, आमिर खान, शबाना आज़मी. और दिलीप कुमार, 
फ़नकारों में फ़िदा हुसैन, बिमिल्ला खान जैसे कुछ लोग हैं. 
आम आदमियों में सैनिक अब्दुल हमीद जैसी कुछ फौजी हस्तियाँ भी हैं जो इस्लाम को फूटी आँख भी नहीं भाते. 
मैंने अपने कालेज को एक क्लास रूम बनवा कर दिया तो कुछ इस्लाम ज़दा कहने लगे की यही पैसा किसी मस्जिद की तामीर में लगते तो क्या बात थी, 
वहीँ उस कालेज के एक मुस्लिम टीचर ने कहा , ग़लत बात है, जुनैद ने मुसलामानों को सुर्खुरू कर दिया, अब हम भी सर उठा कर कालेज  में बातें कर सकते है.
कौन है जो सेंध लगा रहा है आम मुसलामानों के हुकूक़ पर?
कि सरकार को सोचना पड़ता है कि इनको मुलाज़मत दें या न दें?
आर्मी को सोचना पड़ता है कि इनको कैसे परखा जाय?
कंपनियों को तलाश करना पड़ता कि इनमें कोई जदीद तालीम का बंदा है भी?
बनिए और बरहमन की मुलाजमत को इनके नाम से एलर्जी है.
इसकी वजेह इस्लाम है और इसके गद्दार एजेंट जो तालिबानी ज़ेहन्यत रखते हैं.
यह भी हमारी गलतियों से खता के शिकार हैं.
हमारी गलती ये है कि हम भारत में मदरसों को फलने फूलने का अवसर दिए हुए है 
जहाँ वही पढाया जाता है जो कुरआन में है..
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