Sunday 7 August 2016

बांग-ए-दरा 56


बांग-ए-दरा

मुहम्मद , अल्लाह का रसूल 

 होशियार मुहम्मद अल्लाह का मुखौटा पहन कर भेड़ों की भीड़ में खड़ा हो सकता है और वह कम अक़लों का खुदा बन सकता है. दो चार नस्लों के बाद वह मुस्तनद भी हो जाता है. ये हमारी पूरब की दुन्या की ख़ासियत है. मुहम्मद ने अल्लाह का रसूल बन कर कुछ ऐसा ही खेल खेला जिस से सारी दुन्या मुतास्सिर है. मुहम्मद इन्तेहाई दर्जा खुद परस्त और खुद ग़रज़ इंसान थे. 
वह हिकमते अमली में चाक चौबंद, पहले मूर्ति पूजकों को निशाना बनाया, अहले किताब (ईसाई और यहूदी) को भाई बंद बना रखा, कुछ ताक़त मिलने के बाद मुल्हिदों और दहरियों ( कुछ न मानने वाले, नास्तिक ) को निशाना बनाया, और मज़बूत हुए, तो अहले किताब को भी छेड़ दिया कि इनकी किताबें असली नहीं हैं, इन्हों ने फ़र्ज़ी गढ़ ली हैं, असली तो अल्लाह ने वापस ले लीं हैं. हालाँक़ि अहले किताब को छेड़ने का मज़ा इस्लाम ने भरपूर चखा, और चखते जा रहे हैं मगर खुद परस्त और खुद गरज मुहम्मद को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वह को अपने सजदे में झुका हुवा देखना चाहते थे, इसके अलावा कुछ भी नहीं.
ईमान लाने वालों में एक तबका मुन्किरों का पैदा हुआ जिसने इस्लाम को अपना कर फिर तर्क कर दिया, जो मुहम्मदी खुदा को करीब से देखा तो इसे झूट क़रार दिया, उनको ग़ालिब मुहम्मद ने क़त्ल कर देने का हुक्म दिया इससे बा होश लोगों का सफाया हो गया, जो डर कर इस्लाम में वापस हुए वह मुरतिद कहलाए.
मुहम्मद खुद सरी, खुद सताई, खुद नुमाई और खुद आराई के पैकर थे. अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ चाहा, पा लिया, मरने के बाद भी कुछ छोड़ना नहीं चाहते थे कि खुद को पैग़म्बरे आखरुज़ ज़मा बना कर कायम हो गए, यही नहीं मुहम्मद अपनी जिहालत भरी कुरआन को अल्लाह का आखरी निज़ाम बना गए. मुहम्मद ने मानव जाति के साथ बहुत बड़ा जुर्म किया है जिसका खाम्याज़ा सदियों से मुसलमान कहे जाने वाले बन्दे झेल रहे है. अध् कचरी, अधूरी, पुर जेह्ल और नाक़िस कुछ बातों को आखरी निज़ाम क़रार दे दिया है. क्या उस शख्स के सर में ज़रा भी भेजा नहीं था क़ि वह इर्तेकाई तब्दीलियों को समझा ही नहीं. क्या उसके दिल में कोई इंसानी दर्द था ही नहीं कि इसके झूट एक दिन नंगे हो जाएँगे,तब इसकी उम्मत का क्या हश्र होगा?
आज इतनी बड़ी आबादी हज़ारों झूट में क़ैद, मुहम्मद की बख्शी हुई सज़ा काट रही है. वह सज़ा जो इसे विरासत में मिली हुई है, वह सज़ा जो ज़हनों में पिलाई हुई घुट्टी की तरह है, वह क़ैद जिस से रिहाई खुद कैदी नहीं गवारा करता, रिहाई दिलाने वाले से जान पर खेल जाता है. इन पर अल्लाह तो रहेम करने वाला नहीं, आने वाले वक्तों में देखिए, क्या हो? कहीं ये अपने बनाए हुए क़ैद खाने में ही दम न तोड़ दें. या फिर इनका कोई सच्चा पैगम्बर पैदा हो.
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