Tuesday 2 August 2016

बांग-ए-दरा 52


बांग-ए-दरा

दीन के मअनी  (A)

दीन के मअनी हैं दियानत दारी. 
इस्लाम को दीन कहा जाता है मगर इसमें कोई दियानत दारी नहीं है. 
अज़ानों में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल कहने वाले बद दयानती का ही मुज़ाहिरा करते हैं . 
वह अपने साथ तमाम मुसलमानों को गुमराह करते हैं, 
उन्हों ने अल्लाह को न ही सुना कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बनाता हो, 
न अपनी आँखों से देखा , 
फिर अज़ानों में इस बे बुन्याद वाकिए की गवाही दियानत दारी और सदाक़त कहाँ रही ? 
कुरान की हर आयत दियानत दारी की पामाली करती है जिसको अल्लाह का कलाम कह गया है. नई साइंसी तहकीक व् तमीज़ , आज हर मौजूअ को निज़ाम ए कुदरत के मुताबिक सही या ग़लत साबित कर देती है. साइंसी तहकीक के सामने धर्म और मज़हब मज़ाक मालूम पड़ते हैं. बद दयानती को पूजना और उस पर ईमान रखना ही इंसानियत के खिलाफ एक साज़िश है. 
हम लाशऊरी तौर पर बद दयानती को अपनाए हुए हैं. 
जब तक बद दयानती को हम तर्क नहीं करते, इंसानियत की आला क़द्रें कायम नहीं हो सकतीं और तब तक यह दुन्या जन्नत नहीं बन सकती.
आइए हम अपनी आने आली नस्लों के लिए इस दुन्या को जन्नत नुमा बनाएँ. 
इस धरती पर फ़ैली हुई धर्म व् मज़हब की गन्दगी को ख़त्म करें, 
अल्लाह है तो अच्छी बात है और नहीं है तो कोई बात नहीं. 
अल्लाह अगर है तो दयानत दारी और ईमान ए सालेह को ही पसंद करेंगा न कि इन साजिशी जालों को जो मुल्ला और पंडित फैलाए हुए हैं.
*****
(B)   
मोमिन और ईमान, लफ़्ज़ों और इनके मअनों को उठा कर समझिए तो ,
इस्लाम ने इनकी मिटटी पिलीद कर दी है. 
यूँ कहा जाए तो ग़लत न होगा कि इस्लाम ने मोमिन के साथ अक़दे (निकाह) 
बिल जब्र कर लिया है और अपनी जाने जिगर बतला रहा है,
 जब कि ईमान से इस्लाम कोसों दूर है, दोनों का कोई आपस में तअल्लुक़ ही नहीं है, 
बल्कि बैर है. मोमिन की सच्चाई नीचे दर्ज है - -
१- फितरी (प्रकृतिक) सच ही ईमान है. गैर फितरी बातें बे ईमानी हैं-- जैसे हनुमान का उड़ना या मुहम्मद की सवारी बुर्राक का हवा में उड़ना.
२- जो मुम्किनात में से है वह ईमान है. ''शक्कुल क़मर '' मुहम्मद ने ऊँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, उनका सफेद झूट है.
३-जो स्वयं सिद्ध हो वह ईमान है. जैसे त्रिभुज के तीन नोकदार कोनो का योग एक सीधी रेखा. या इंद्र धनुष के सात रंगों का रंग बेरंग यानी सफेद.
४- जैसे फूल की अनदेखी शक्ल खुशबू, बदबू का अनदेखा रूप दुर्गन्ध.
५- जैसे जान लेवा जिन्स ए मुख़ालिफ़ में इश्क़ की लज्ज़त.
६- जैसे जान छिड़कने पर आमादा खूने मादरी व खूने पिदरी.
७- जैसे सच और झूट का अंजाम.
ऐसे बेशुमार इंसानी अमल और जज्बे हैं जो उसके लिए ईमान का दर्जा रखते हैं. 
मसलन - - - 
लिया हवा क़र्ज़ चुकाना, 
सुलूक का बदला, अहसान न भूलना, 
अमानत में खयानत न करना, वगैरह वगैरह। 



No comments:

Post a Comment