Tuesday, 30 August 2016

बांग-ए-दरा 77




बांग-ए-दरा

जन्नत की नाकिस नहरें 

क़ुरान में मुहम्मदी अल्लाह क्या कहना चाहते हैं ? 
उनकी फितरत को समझते हुए मफहूम अगर समझ भी लो तो 
सवाल उठता है कि बात कौन सी अहमयत रखती है? 
क्या ये बातें तुम्हारे इबादत के क़ाबिल हैं ?
क्या रूस, स्वेडन, नारवे, कैनाडा, यहाँ तक की कश्मीरियों के लिए घरों के नीचे बहती हुई नहरें अज़ाब नहीं होंगी ? आज तो घरों के नीचे बहने वाली गटरें होती हैं. 
मुहम्मद अरबी रेगिस्तानी थे जो गर्मी और प्यास से बेहाल हुवा करते थे, 
लिहाज़ा ऐसी भीगी हुई बहिश्त उनका तसव्वुर हुवा करता था.
ये कुरान अगर किसी खुदा का कलाम होता या किसी होशमंद इंसान का कलाम ही होता तो 
वह कभी ऐसी नाकबत अनदेशी की बातें न करता.

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मोमिन और मुस्लिम का फ़र्क़ 
मुसलमानो! 
एक बार फिर तुम से गुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. 
मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने की  कोशिश करो. 
मुहम्मदी ओलिमा ने दोनों लफ़्ज़ों को खलत मलत कर दिया है और तुम को गुमराह किया है कि 
मुस्लिम ही असल मोमिन होता है जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो. 
यह किज़्ब है, दरोग़ है, झूट है,
 सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है, 
इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है. 
जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है वही अब तक का सच है, 
वही इंसानी ईमान है. 
अकीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं जिनका नाजायज़ फ़ायदा खुद साखता अल्लाह के पयम्बर, भगवन रूपी अवतार , गुरु, महात्मा उठाते हैं.
तुम समझने की कोशिश करो. 
मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ. 
ख़बरदार ! कहीं मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना वर्ना सब गुड गोबर हो जायगा, 
क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना वर्ना मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी. धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदान से निकल कर दूसरे चूहेदान में जाना है. 
बनना ही है कुछ तो मुकम्मल इन्सान बनो, 
इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा. 
मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में ५१% भारत मोमिन हो जायगा। 
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