
बांग-ए-दरा
मुहम्मद एक कमज़ोर इंसान
तथा कथित बाबा, रामदेव की मौजूदः कहानी, इनकी शख्सियत, इनका तौर तरीक़ा, इनकी लफ्फाज़ी और चाल-घात, कुछ कुछ मुहम्मद से मिलती जुलती हैं.
जंगे-बदर के बाद जंगे-ओहद में अल्लाह के खुद साख्ता रसूल हार के बाद अपने मुँह ढक कर हारी हुई फ़ौज के सफ़े-आखीर में पनाह लिए हुए खड़े थे और अबू सुफ्यान की आवाज़ ए बुलंद को सुनकर भी टस से मस न हुए. वह आवाज़ जंग का बाहमी समझौता हुवा करती थी कि नाम पुकारने के बाद दस्ते के मुखिया को सामने आ जाना चाहिए ताकि उसके मातहतों का खून खराबा मजीद न हो.
वैसे भी मुहम्मद ने कभी तलवार और तीर कमान को हाथ नहीं लगाया,
बस लोगों को चने की झाड़ पर चढाए रहते थे. उनका कलाम होता ,
'' मार ज़ोर लगा के, तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान"
बकौल लालू ,बाबा कुदंग योग लगा कर भागे.
राम देव ने लिबासे निसवां पहन कर जान बचाई और मुहम्मद ने लिबासे दरोग (मिथ्य)का सहारा लिया.
मुहम्मद अल्लाह के झूठे रसूल थे और रामदेव जनता का झूठा पीड़ा मोचक.
उसके समर्थको को देख कर मैं मुसलमानों को देखता हूँ और अपना सर पीटता हूँ.
No comments:
Post a Comment