Sunday 28 August 2016

बांग-ए-दरा 75


बांग-ए-दरा
 नास्तिक 

धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. 
वो इनके खुदाओं को न मानने वालों को अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक समझते हैं. 
कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. 
यह कमज़र्फ और खुद में बने मुजरिम, 
समझते हैं कि खुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, 
क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. 
ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख्सियत नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होती है और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. 
वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होती हैं,
 उनको ग्रहण कर लेता है और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. 
यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. 
नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. 
पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. 
नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी, 
आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. 
पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया था  कि वह क्रिश्चेन हैं, इस लिए सोनिया गाँधी का खास लिहाज़ रखते हैं. 
जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,
"मैं क्रिश्चेन नहीं  हूँ , एक नास्तिक हूँ 
और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते.
" बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में 
"आली जनाब लिंगदोह, 
दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं. 
ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है. जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी 
जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.

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