Thursday 11 August 2016

बांग-ए-दरा 60





बांग-ए-दरा

इस्लामी नासूर 

तालिबान अफगानिस्तान से खदेडे जाने के बाद अब पाकिस्तान पर जोर आजमाई कर रहा है, बिलकुल इसलाम का प्रारंभिक काल दोहराया जा रहा है जब मुहम्मद बज़ोर गिजवा (जंग) हर हाल में इसलाम को मदीना के आस पास फैला देना चाहते थे। वह अपने हुक्म को अल्लाह का फ़रमान क़ुरआनी आयतों द्वारा प्रसारित और प्रचारित करते. लोगों को ज़बर दस्ती जेहाद पर जाने के लिए आमादा करते, लोग अल्लाह के बजाय उनको ही परवर दिगर! कह कर गिडगिडाते की आप हम को क्यूं मुसीबत में डाल रहे हैं 
तो वह ताने देते की औरतों की तरह घरों में बैठो. 
मज़े की बात ये कि जंगी संसाधन भी खुद जुटाओ. एक ऊँट पर ११-११ जन बैठते. 
ये सब क़ुरआन में साफ साफ़ है जिसे इस्लामी विद्वान छिपाते हैं
 और जालिम तालिबान सब जानते हैं. 
आज भी तालिबान अपने अल्लाह द्वतीय मुहम्मद के ही पद चिन्हों पर चल रहे है. 
इन्हें इंसानी ज़िन्दगी से कोई लेना देना नहीं, 
बस मिशन है इस्लाम का प्रसार। 
इसी में उनकी हराम रोज़ी का राज़ छुपा है.
इधर पाकिस्तान का धर्म संकट है कि इस्लाम के नाम पर बन्ने वाला पाकिस्तान 
जब तालिबानियों द्वारा इस्लामी मुल्क पूरी तरह बन्ने की दर पर है तो 
उसकी हवा क्यूं ढीली हो रही है? 
उसका रूहानी मिशन तो साठ साल बाद मुकम्मल होने जा रहा है. 
निजामे मुस्तफा ही तो ला रहे हैं ये तालिबानी. 
मुस्तफा यानी मुहम्मद जो बच्ची के पैदा होने को औरत का पैदा होना कहते थे (क़ुरआन में देखें ) औरत पर पर्दा लाजिम है. 
मुहम्मद ने सात साला औरत आयशा के साथ शादी रचाई, आठ साल में उस से सुहाग रात मनाई और परदे में बैठाया, तालिबान अपने रसूल की पैरवी करके क्या गलत कर रहे हैं? 
उनको ख़त्म करके पाकिस्तान इस्लाम को क़त्ल कर रहा है, 
कोई मुल्ला उसे फतवा क्यूं नहीं दे रहा? 
"मुहम्मद मैले कपडे लादे रहते" 
इस ज़रा सी बात पर पाकिस्तान न्यायलय ने एक ईसाई बन्दे को तौहीन ए रिसालत के जुर्म में सजाए मौत दे दिया था, 
आज पाक अद्लिया किं कर्तव्य विमूढ़ क्यूँ ? पाक इसलाम के तलिबों से लड़ने के साथ साथ कुफ्र से भी (भारत) लडाई पर आमादा है. कहते हैं कि उसकी एटमी हत्यारों का रुख भारत की ओर है. यह पाकिस्तान की गुमराही ही कही जाएगी.
मज़हब के नाम पर जो हमारे बड़ों ने अप्रकृतिक बटवारा किया था उसका बुरा अंजाम सामने है, बहुत बुरा हो जाने से पहले हम को सर जोड़ कर बैठना चहिए कि हम १९४७ की भूल सुधारें 
और फिर एह हो जाएँ. 
इस तरह कल का हिदोस्तान शायद दुन्या कि नुमायाँ हस्ती बन कर लोगों कि आँखें खैरा कर दे। मगर भारत के हिदुत्व के पाखंड को भी साथ साथ ख़त्म करना होगा 
जो कि इस्लामी नासूर से कम नहीं। 
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