Wednesday 3 August 2016

बांग-ए-दरा 53


बांग-ए-दरा

 क्या मुसलामानों ने कभी सोचा ?

* क्या आप कभी ख़याल करते हैं कि इस जहाँ में आपका सच्चा रहनुमा कौन है?
* क्या आप ने कभी गौर किया कि किस मसलके-इस्लाम से आप का तअल्लुक़ हैं?
* क्या आपने कभी ख़याल किया कि आप का महफूज़ मुल्क कहाँ है?
* क्या आपने कभी सोचा कि आप में किसी ने इस धरती को कुछ दिया, 
जिससे सब कुछ ले रहे है?
* क्या आप ने कभी खोजबीन की, कि मौजूदा ईजाद और तरक्की में आपका कोई योगदान है? जब कि भोगने में आगे है?
* क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा हुई है?
* क्या आप ने कभी ख़याल किया कि अपनी नस्लों के लिए किया कर रहे हैं?

बतौर नमूने के यह चन्द सवाल मैंने आपके सामने रख्खे हैं, सवाल तो सैकड़ों हैं. 
बगैर दूर अनदेशी के जवाब तो आपके पास हर सवाल के होंगे मगर हकीकत में आप के पास कोई मअक़ूल जवाब नहीं, 
अलावः शर्मसार होने के, 
क्यूँकि आपको मुहम्मदी अल्लाह ने गुमराह कर रखा है कि यह दुन्या फ़ानी है 
और आक़बत की ज़िदगी लाफ़ानी. 
इस्लाम ९०% यहूदियत है और यह अकीदा भी उन्हीं का है। वह इसे तर्क करके आसमान में सुरंग लगा रहे हैं और मुसलमान उनकी जूठन चबा रहे हैं. 
पहला सवाल है मुसलमानों की रहनुमाई का? 
आलावा रूहानी हस्तियों के कोई काबिले ज़िक्र नहीं, 
रूहानियत जो अपने आप में इन्सान को निकम्मा बनाती है, 
इनको छोड़ कर जिसके शाने बशाने आप हों? 
आला क़द्रों में कबीर, शिर्डी का साईं बाबा जैसे जो आपके लिए नियारया हो सकते थे उनको आप ने इस्लाम से ख़ारिज कर दिया और वह हिन्दुओं में बस कर उनके अवतार हो गए. 
माजी करीब में क़ायदे-मिल्लत मुहम्मद अली जिनह शराब और सुवर के गोश्त के शौकीन थे, कभी भूल कर नमाज़ रोज़ा नहीं किया, कैसे पाकिस्तानियों ने उनको क़ायदे-मिल्लत बना दिया? 
मौलाना आज़ाद सूरज डूबते ही शराब में डूब जाते थे. 
ए.पी.जे अब्दुल कलाम तो जिंदा ही हैं, मुसलमान उनको मुहम्मदी हिन्दू कहते हैं। 
इनमें से कोई इस्लाम की कसौटी पर खरा नहीं उतरा. 
गाँधी जी जो आप के हमदर्दी में गोली के शिकार हुए, उनको आप के ओलिमा काफ़िर कहते हैं। बरेली के आला हज़रात ने तो उनकी अर्थी में शामिल होने वाले मुसलमानों को काफ़िर का फ़तवा दे दिया था. 
एक कमाल पाशा तुर्की में मुस्लिम रहनुमा सही मअनो में हुवा जिसको इस्लामी दुन्या क़यामत तक मुआफ नहीं करेगी. 
पिछली चौदा सदियों से आप लावारिस हैं, 
क्यूँकि आप का वारिस, मालिक, रहनुमा है मुहम्मदी अल्लह और 
वह फरेब जिसके आप शिकार हैं आप के आखरुज्ज़मा. सललल्लाहो अलैहे वसल्लम.
आप किस टाइप के मुसलमान है? टाईप नंबर एक तो आप को काफ़िर कहता है. 
हर मस्जिद किसी न किसी मुल्ला की हुकूमत बनी हुई है. 
खुद मुहम्मद ने मस्जिदे नबवी को अपने हाथों से मदीने में मिस्मार किया कि वह काफिरों की मस्जिद हो गई थी. 
अली ने तीनो खलीफाओं को क़त्ल कराया, 
यहाँ तक कि उस्मान गनी की लाश तीन दिनों तक सडती रही ,
तब रहम दिल यहूइयों ने उनको अपने कब्रिस्तान में दफ़नाया था. 
दुन्या भर में बकौल मुहम्मद अगर मुसलमानों के ७२ फिरके हो चुके हैं तो 
उनमें से ७१ आपका जानी दुश्मन हैं.
फिर भी आप मुसलमान हैं? 
जाएँगे भी कहाँ? सोचें कि कोई रास्ता बचा है आपके लिए?
आपका कोई मुल्क नहीं कहीं आप आज़ादी के साथ कहीं भी नहीं रह सकते, 
हर मुल्क में आप पड़ोस में दुश्मन पाले हुए हैं आपका कोई मुल्क हो ही नहीं सकता, 
तमाम दुन्या पर इस्लाम को छा देने की आप की नियत जो है और 
आप को अमलन देखा गया है कि मुस्लिम हुक्मरान हमेशा एक दूसरे को फ़तह करते रहे. 
बस काबे में आप सब ज़रूर इकठ्ठा होते हैं लबबैक कह कर, 
ताकि कुरैशियों को इमदाद जारिया हो और आप को मुहम्मदी सवाब मिले.
आप ने खिदमत ए ख़ल्क़ के लिए कोई ईजाद की? 
कोई तलाश कोई या कोई खोज मुसलामानों द्वारा वजूद में आई ? 
आप दो चार मुस्लिम नाम गिना सकते हैं और ए. पी जे. अब्दुल कलाम को भी पेश कर सकते हैं, मगर आप अच्छी तरह जानते हैं कि साइंटिस्ट कभी मुसलमान हो ही नहीं सकता. मुसलमान तो सिर्फ अल्लाह का खोजी होता है और उम्मी मुहम्मद को सब से बड़ा साइंसदान ख़याल करता है. 
जहाँ कोई फ़नकार बना कि टाट पट्टी बाहर हुवा. 
मकबूल फ़िदा हुसैन या नव मुस्लिम ए. आर. रहमान जैसी आलमी हस्तियाँ क्या इस्लाम को गवारा हैं? 
हम तो यहाँ तक कहेंगे कि मुसलमानों को नई ईजादों की बरकतों को छूना भी नहीं चाहिए, चाहे रेल या हवाई सफ़र हो, चाहे बिजली हो. मोबाईल, कप्यूटर,ए.सी. मुसल्म्मानों के लिए बंद और हराम हो जाना चाहिए, 
तब होश ठिकाने आएँगे. 
इसकी तालीम भी इनके लिए मामनू हो अगर तालिब इल्म इस्लामी अकीदे का हो, 
वर्ना इल्म का इस्तेमाल तालिबान बन कर इंसानियत पर खुदकश बम बन कर नाज़िल.
क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा हुई है? कोई नहीं. उन्हों ने इसकी इजाज़त ही नहीं दी. ज़माना जितना आगे जाएगा, 
मुसलमान उतना ही पीछे चला जायगा. एक दिन इसके हाथ में झाड़ू पंजा आ जाएगा. 
इसकी अलामत बने मज़लूम बिरादरी भी जग गई है 
मगर मुसलमानों की नींद ही नहीं खुल रही है.
मुसलमानों ! मोमिन आप के साथ रहते हुए आप को जगा रहा है, 
वर्ना उसके लिए बड़ा आसान था ईसाई या हिन्दू बन जाना. 
क्यूं अपनी जान को हथेली पर रख कर मैदान में उतरा? 
इस लिए कि आप लोग सब से ज्यादह इंसानी बिरादरी की आँखों में खटक रहे हो. 
मै आपका कुछ भी नहीं छीनना चाहता, जैसे हैं, जहाँ हैं, बने रहिए 
बस ईमानदार मोमिन बन जाइए, 
देखिएगा कि ज़माने की नफरत आपकी पैरवी में बदल जाएगी.
इस्लामी ओलिमा को अपनी ड्योढ़ी मत लांगने दीजिए और 
इन्हें गलाज़त आलूद खिंजीर मानिए. 
इनके अलावा जो भी आपको इस्लाम के हक़ में समझाए, 
देखिए कि इसकी रोज़ी रोटी तो इस्लाम से वाबिस्ता नहीं है? 
ऐसे लोगों की मदद कीजिए कि वह ज़रीआ मुआश बदल सकें. 
आप जागिए और दूसरों को जगाइए. 
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