Monday, 15 August 2016

बांग-ए-दरा 63





बांग-ए-दरा

इब्लीस मरदूद

अल्लाह ने मिटटी और गारे का एक पुतला बनाया और अपने सबसे बड़े फ़रिश्ते को हुक्म दिया कि इसको सजदा कर . 
फ़रिश्ते ने लाहौल (धिक्कार) पढ़ी और कहा मैं अग्नि का बना, और इस माटी के माधो को सजदा करूँ ?
अल्लाह को ग़ुस्सा आया और फ़रिश्ते को इब्लीस मरदूद क़रार दिया और जन्नत से बाहर का रास्ता दिखलाया। 
जाते जाते शैतान ने अल्लाह को गच्चा देते हुए उसके कुछ अख्तियार ले ही गया .
अपनी हिकमत ए अमली के बदौलत वह बन्दों का खुदाए सानी बन गया अर्थात अल्लाहु असग़र। शैतान अल्लाह की तरह हर जगह विराजमान है , कुरआन की हर सूरह शैतानुर रजीम का नाम पहले आता है, बिस्म अल्लाह का नाम बाद में (एक को छोड़ कर) इस्लाम में शैतान पेश पेश है और अल्लाह पस्त पस्त . 
इंसान के हर अमल में शैतान का दख्ल है. करम अच्छे हों या बुरे, नतीजा ख़राब है तो शैतान के नाम अगर अच्छे रहे तो अअल्लाह के नाम .
( इस बे ईमानी को हज़रत ए इंसान खुद तस्लीम करते हैं .) 
अल्लाह की तरह शैतान किसी की जान नहीं लेता, यह उसकी खैर है .
शैतान ने ही इंसान को इल्म जदीद, मन्तिक़ और साइंस की ऐसी घुट्टी पिलाई कि वह सय्यारों पर पहुँच गया है 
और अल्लाह के बन्दे याहू ! याहू !! रटने लगे हैं . 
शैतान ही इंसान को नई तलाश में गामज़न रखता है, अक़ीदे जिसे गुनाह और गुमराही कहते हैं।
अल्लाह की बख्शी हुई ऊबड़ खाबड़ ज़मीन को शैतानी बरकतों ने पैरिस, लन्दन, न्यूयार्क, टोटियो, दुबई और बॉम्बे का रूप दे दिया है। 
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