Friday 5 August 2016

बांग-ए-दरा 55


बांग-ए-दरा

इबादत

इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. 
तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है 
कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, 
यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. 
इनसे नफरत करना गुनाह है, 
इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. 
इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अल्लाह को मानने से पहले उसे जानने की ज़रुरत है. इसके लिए हमें अपने दिमाग को रौशन करना पड़ेगा. 
इस धरती पर जितने भी रहमान और भगवन है, 
सब हजरते इंसान के दिमागों के गढ़े हुए हैं. 
क़ुदरत और फ़ितरत इनके हथियार हैं और इनके खालिक़ ए मशकूक की बरकत इनका ज़रीआ मुआश. 
इन खुदा फरोशों से दूर रहकर ही हम सच के आशना हो सकते हैं. 
फ़ितरत ने हमें सिर्फ़ खाम मॉल दिया है 
और इसे शक्ल देने के लिए औज़ार दिए हैं . . .
हाथ पैर, कान नाक, मुँह और दिल ओ दिमाग और सब से आखीर मरहला, 
जब हम शक्ल मुकम्मल कर लेते हैं तो फिनिशिग के लिए दिए हैं,
ज़मीर नुमा पालिश.
इस तरह हम ज़िन्दगी के तमाम मुआमले तराश सकते हैं और फिनिशिंग तक ला सकते हैं. इस ज़मीन को ही जन्नत बना सकते हैं. 
हमें अपने दिलो- दिमाग की हालत ठीक करना है, जिस पर रूहानियत ग़ालिब है. 
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