Monday, 31 October 2016

बांग-ए-दरा 137




बांग ए दरा 

तबई झूट

मुहम्मदी अल्लाहसूरह में कुरआन को शब क़द्र की रात को उतारने की बात कर रहा है
तो कहीं पर कुरआन माहे रमजान में नाज़िल करने की बात करता है, 
जबकि कुरआन मुहम्मद के खुद साख्ता रसूल बन्ने के बाद उनकी आखरी साँस तक, 
तक़रीबन बीस साल चार माह तक मुहम्मद के मुँह से निकलता रहा. 
मुहम्मद का तबई झूट आपके सामने है. 
मुहम्मद की हिमाक़त भरी बातें तुम्हारी इबादत बनी हुई हैं, 
ये बडे शर्म की बात है. ऐसी नमाज़ों से तौबा करो. झूट बोलना ही गुनाह है, 
तुम झूट के अंबार के नीचे दबे हुए हो. 
तुम्हारे झूट में जब जिहादी शर शामिल हो जाता है तो वह बन्दों के लिए ज़हर हो जाता है. 
तुम दूसरों को क़त्ल करने वाली नमाज़ अगर पढोगे तो 
 सब मिल कर तुमको ख़त्म कर देंगे. 
मुस्लिम से मोमिन हो जाओ, बड़ा आसान है. 
सच बोलना, सच जीना और सच ही पर मर जाना सीखो.  
 ये बात सोचने में है पहाड़ लगती है, अमल पर आओ तो कोई रूकावट नहीं.

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