Saturday 8 October 2016

बांग-ए-दरा 116



बांग-ए-दरा 116

अल्लाह का ज्ञान 
"वही तो है जो तुम्हारी पैदाइश मिटटी से करता है, फिर उसे फुटकी बूँद बना देता है, फिर उसको लहू के लोथड़े यानि लहू की फुटकी में तब्दील फ़रमाता है, फिर तुमको बच्चा बना कर बाहर निकालता है, फिर तुम हो कि अपनी जवानी तक पहुँचाए जाते हो, फिर बहुत बूढ़े भी हो जाते हो. कुछ तो अपना वक़्त हो जाने पर जवानी या बुढापे के पहले ही मर जाते हैं, और बाकी बहुत से अपने अपने वक़्त तक बराबर पहुँचते रहते हैं. इन हालात को ध्यान में रख कर अक्ल से काम लो." 
सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (५९-६७)
अक्ल से काम लो और उम्मी की जनरल नालेज पर तवज्जो दो. इंसान की पैदाइश के सिलसिले में ये उम्मी का गया हुवा ये नया राग है.
नोट :-
मेरे हिंदी लेख खास कर उन मुस्लिम नव जवानो के लिए होते हैं जो उर्दू नहीं जानते . अगर इसे ग़ैर  मुस्लिम भी पढ़ें तो अच्छा है , हमें कोई एतराज़ नहीं , बस इतनी ईमान दारी के साथ कि अपने गरेबान में मुंह डाल कर देखें कि कहीं उनके धर्म में भी कोई मानवीय मूल्य आहत तो नहीं होते . 

चरवाहे का कलाम 
मुसलामानों ! देखो कि यह क़ुरान एक चरवाहे का कलाम है 
जिसको बात करने की भी तमीज़ नहीं, 
कम अज़ कम आम आदमी की तरह क़िस्सा गोई ही कर पाता, 
बात को वाज़ेह कर पाता।
 मुतरज्जिम को इस उम्मी की काफी मदद करनी पड़ी 
फिर भी कहानी के बुनियाद को वह क्या करता. 
मुहम्मद के रक्खे गए बेसिर पैर की बुन्याद को कैसे खिस्काता? 
क्या अल्लाह के नाम पर ऐसी जग हँसाई करवाना इस सदी में आप को ज़ेबा देता है? 
क्या मुहम्मद ओलिमा की तरह बे गैरती के घूँट आपने भी पी रखी हैं? 
उनकी तो रोटी रोज़ी का मसअला है
 मगर आप ज़मीर फरोश तो नहीं हैं.
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