Monday 3 October 2016

बांग-ए-दरा 112




बांग ए दरा 

मुअज्ज़े
मूसा और ईसा के बहुत से मुआज्ज़े(चमत्कार)थे जिनको देख कर लोग क़ायल हो जाया करते थे और उनकी हस्ती को तस्लीम करते थे. 
मूसा के करिश्मे कि पानी पर लाठी मारके उसे फाड़ देना, 
लाठी को ज़मीन पर डालकर उसे सांप बना देना, 
दरयाय नील को अपनी लाठी के लम्स से सुर्ख कर देना, 
नड सागर को दो हिस्सों में तक़सीम करके बीच से रास्ता बना देना वगैरह वगैरह. 
इसी तरह ईसा भी चलते फिरते करिश्में दिखलाते थे. 
बीमार को सेहत मंद कर देना, 
कोढियों को चंगा करदेना, 
सूखे दरख़्त को हरा भरा कर देना 
और बाँझ औरत की गोद भर देना वगैरह वगैरह. 
लोग मुहम्मद से पूछा करते कि आप बहैसियत पैगम्बर क्या मुअज्ज़े रखते हैं 
तो जवाब में मुहम्मद बजाय अपने करिश्मे दिखलाने के कुदरत के कारनामें गिनवाने लगते, जैसे रात के पीछे दिन और दिन के पीछे रात के आने का करिश्मा, 
मेह से पानी बरसने का करिश्मा, 
ज़मीन के मर जाने और पानी पाकर जी उठने का करिश्मा, 
अल्लाह को हर बात के इल्म होने का करिश्मा. 
किस कद्र ढीठ और बेशर्मी का पैकर थे वह. 
करिश्मा साज़. बाद में रसूल के प्रोपेगंडा बाजों नें रसूली करिश्मों के अम्बार लगा दिए. 
पानी की कमयाबी अरब में मसला-ए-अज़ीम था, सफ़र में पानी की जहाँ कमी होती लोग प्यास से बिलबिला उठते, बस रसूल की उँगलियों से ठन्डे पानी के चश्में फूट निकलते. 
लोग सिर्फ प्यास ही न बुझाते, वजू भी करते बल्कि नहाते धोते भी. 
रसूल हांड़ी में थूक देते, बरकत ऐसी होती की दस लोगों की जगह सैकड़ों अफराद भर पेट खाते और हांड़ी भरी की भरी रहती. 
इस किस्म के दो सौ चमत्कार मुहम्मद के मदद गार उनके बाद उनके नाम से जोड़ते गए. मुहम्मद जीते जी लोगों के तअनो से शर्मसार हुए तो दो मुअज्ज़े आख़िरकार गढ़ ही डाले 
जो मूसा और ईसा के मुअज्जों को ताक़ पर रख दें. 
पहला यह कि उंगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए जिसे ''शक्कुल क़मर'' नाम दिया. दूसरा था पल भर में सातों आसमानॉ की सैर करके वापस आ जाना, 
इसको नाम दिया ''मेराज''। 
यह बात अलग है कि इसका कोई गवाह नहीं सिवाय अल्लाह के. 
अफ़सोस कि मुसलामानों का यह गैर फितरी सच ईमान बन गया है।
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