Sunday 9 October 2016

बांग-ए-दरा 117




बांग ए दरा 
मोमिन बनाम मुस्लिम 

मुसलामानों खुद को बदलो. 
बिना खुद को बदले तुम्हारी दुन्या नहीं बदल सकती. 
तुमको मुस्लिम से मोमिन बनना है. 
तुम अच्छे मुस्लिम तो ज़रूर हो सकते हो मगर मोमिन क़तई नहीं,
 इस बारीकी को समझने के बाद तुम्हारी कायनात बदल सकती है.
 मुस्लिम इस्लाम कुबूल करने के बाद ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' 
यानि अल्लाह वाहिद के सिवा कोई अल्लाह नहीं और मुहम्मद उसके पयम्बर हैं. 
मोमिन फ़ितरी यानी कुदरती रद्दे अमल पर ईमान रखता है. 
ग़ैर फ़ितरी बातों पर वह यक़ीन नहीं रखता, 
मसलन इसका क्या सुबूत हैकि मुहम्मद को अल्लाह ने अपना पयम्बर बना कर भेजा?
 इस वाकेए को न किसी ने देखा न अल्लाह को पयम्बर बनाते हुए सुना. 
जो ऐसी बातों पर यक़ीन या अक़ीदत रखते हैं 
वह मुस्लिम हो सकते हैं मगर मोमिन कभी भी नहीं. 
मुसलमान खुद को साहिबे ईमान कह कर आम लोगों को धोका देता है कि 
लोग उसे लेन देन के बारे में ईमान दार समझें, 
उसका ईमान तो कुछ और ही होता है, 
वह होता है ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' 
इसी लिए वह हर बात पर इंशा अल्लाह कहता है. 
यह इंशा अल्लाह उसकी वादा खिलाफ़ी, बे ईमानी, धोखा धडी और हक़ तल्फ़ी में बहुत मदद गार साबित होता है. 
इस्लाम जो ज़ुल्म, ज़्यादती, जंग, जूनून, जेहाद, बे ईमानी, बद फेअली, बद अक़ली और बेजा जेसरती के साथ सर सब्ज़ हुवा था, उसी का फल चखते हुए अपनी रुसवाई को देख रहा है. 
ऐसा भी वक्त आ सकता है कि इस्लाम इस ज़मीन पर शजर-ए-मम्नूअ बन जाय 
और आप के बच्चों को साबित करना पड़े कि वह मुसलमान नहीं हैं. 
इससे पहले तरके इस्लाम करके साहिबे ईमान बन जाओ. 
वह ईमान जो २+२=४ की तरह हो, जो फूल में खुशबू की तरह हो, जो इंसानी दर्द को छू सके, 
जो इस धरती को आने वाली नस्लों के लिए जन्नत बना सके. 
उस इस्लाम को खैरबाद करो जो 
''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' 
जैसे वह्म में तुमको जकड़े हुए है. 
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