Tuesday 4 October 2016

बांग-ए-दरा 113


बांग ए दरा 

सहाबी ए कराम 

आम मुसलमान मुहम्मद कालीन युग में इस्लाम पर ईमान लाने वाले मुसलामानों को जिन्हें सहाबी ए कराम कहा जाता है, पवित्र कल्पनाओं के धागों में पिरो कर उनके नामों की तस्बीह पढ़ा करते हैं, जब कि वह लोग ज़्यादः तर गलत थे, 
वह मजबूर, लाखैरे, बेकार और खासकर जाहिल लोग हुवा करते थे. क़ुरआन और हदीसें खुद इन बातों के गवाह हैं. अगर अक़ीदत का चश्मा उतार के तलाशे हक़ की ऐनक लगा कर इसका मुतालिआ किया जाए तो सब कुछ कुरआन और हदीसों में ही न अयाँ और निहाँ है . 
आम मुसलमान मज़हबी नशा फरोशों की दूकानों से और इस्लामी मदारियों से जो पाते है वही जानते हैं, इसी को सच मानते हैं. 
क़ुरआन में मुहम्मद का ईजाद करदा भारी आसमान वाला अल्लाह अपनी जेहालत, अपनी हठ धर्मी, अपनी अय्यारियाँ, अपनी चालबाजियाँ, अपनी दगाबज़ियाँ, अपने दारोग (मिथ्य), अपने शर और साथ साथ अपनी बेवकूफ़ियाँ खोल खोल कर बयान करता है. 
मैं तो क़ुरआनी फिल्म का ट्रेलर भर आप के सामने अपनी तहरीरों में पेश कर रहा हूँ. 
मेरा दावा है कि मुसलामानों को अँधेरे से बाहर निकालने के लिए एक ही इलाज है कि इनको नमाज़ें इनकी मादरी ज़ुबान में तर्जुमें की शक्ल में पढाई जाएँ.  इन्हें बिल्जब्र सुनाया जाए. 
जदीद क़दरों के मुकाबिले में क़ुरआनी दलीलें रुसवा की जाएँ जोकि इनका अंजाम बनता है 
तब जाकर मुसलमान इंसान बन सकता है।

*****




No comments:

Post a Comment