Wednesday 5 October 2016

बांग-ए-दरा 114


बांग ए दरा

झूट का पाप=क़ुरआन का आप 

बहुत ही अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि क़ुरआन वह किताब है जिसमें झूट की इन्तेहा है. हैरत इस पर है कि इसको सर पे रख कर मुसलमान सच बोलने की क़सम खाता है, 
अदालतों में क़ुरआन उठा कर झूट न बोलने की हलफ बरदारी करता है. 
क़ुरआन में मुहम्मद कभी मूसा बन कर उनकी झूटी कहनियाँ गढ़ते हैं 
तो कभी ईसा बन कर उनके नक़ली वाकेए बयान करते हैं. 
वह अपने हालात को कभी सालेह की झोली में डाल कर अवाम को बेवकूफ बनाते हैं 
तो कभी सुमूद की झोली में. 
जिन जिन यहूदी नबियों का नाम सुन रखा है सब के सहारे से फ़र्ज़ी कहानियाँ बड़े बेढंगे पन से गढ़ते हैं और क़ुरआन की आयतें तय्यार करते है. 
अल्लाह से झूटी वार्ता लाप, जन्नत की मन मोहक पेशकश और दोज़ख के भयावह नक्शे,
झूट के पर नहीं होते, जगह जगह पर भद्द से गिरते हैं. खुद झूट के जाल में फँस जाते हैं. जहन्नमी ओलिमा को इन्हें निकलने में दातों पसीने आ जाते हैं.
वह मज़हब के कुछ मुबहम, गोलमोल फार्मूले लाकर इनकी बातों का रफू करते हैं 
जो मुस्लमान भेड़ें सर हिला कर मान लेती हैं. 
मुहम्मद खुल्लम खुल्ला इतना झूट बोलते हैं कि कभी कभी तो अपने अल्लाह को भी ज़लील कर देते हैं और ओलिमा को कहना पड़ता है 
''लाहौल वला क़ूवत''अल्लाह के कहने का मतलब यह है ( ? )
यही वजेह है कि क़ुरआन पढने की किताब नहीं बल्कि तिलावत (पठन-पाठन) का राग माला रह गया है। गो कि इस्लाम में गाना बजाना हराम है मगर क़ुरआन के लिए किरअत की लहनें बन गई है यह लहनें भी एक राग है मगर इसे हलाल कर लिया गया है. 
क़ुरआन को लहेन में गाने का आलमी मुकाबिला होता है. 
इसके अलावा इसको पढ़ कर मुर्दों को बख्शा जाता है, 
इसको पढने से जिदों को मुर्दा होने के बाद उज्र मिलता है. 
और यह अदालतों में हलफ उठने के काम भी आता है.
क़ुरआन की आयतें ही भोले भाले मुसलमानों को जेहादी बनाती हैं। 
और मुस्लिम ओलिमा क़ुरआन उठा कर अदालत में बयान दे सकते हैं कि 
क़ुरआन सिर्फ अम्न का पैगाम देता है. 
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