Saturday, 15 October 2016

बांग-ए-दरा 123




बांग ए दरा 

मुस्लिम कट्टरता बेवक़ूफ़ी होती है 

मुस्लिम अपनी आस्था के तहत ऊपर की दुन्या में मिलने वाली जन्नत के लिए इस दुन्या की ज़िन्दगी को संतोष के साथ गुज़ार देंगे. 
उनको मजदूर, मिस्त्री, राज, नाई, भिश्ती और मुलाजिम सस्ते दामों में मिलते रहेंगे.
मुस्लिम कट्टरता बेवक़ूफी होती है जो इन्सान को एक बार में ही कत्ल करके हमेशा के लिए उसके फायदे से बंचित हो जाती  है , 
इसके बर अक्स हिन्दू कट्टरता बुद्धिमान होती है जो इन्सान को दस बना कर रखती है , न मरने देती है न मुटाने देती है. 
यह मानव समाज को धीरे धीरे अछूत बना कर, उनका एक वर्ग बना देती और खुद स्वर्ण हो जाती है. पाँच हज़ार साल से भारत के मूल बाशिदे और आदि वासी इसकी मिसाल हैं.
इन दोनों कट्टरताओं को मज़हब और धर्म पाले रहते है, जिनको मानना ही मानव समाज की हत्या या फिर उसकी खुद कुशी है.
इसके आलावा क़ुरआन के मुख़ालिफ़ कम्युनिस्ट और पश्चिमी देश भी है जो पूरे कुरआन को ही जला देने के हक में है, इन देशों में धर्म ओ मज़हब की अफीम नहीं बाक़ी बची है, इस लिए वह पूरी मानवता के हितैषी हैं.
भारतीय मुसलामानों के दाहिने खाईं है, तो बाएँ पहाड़. उसका मदद गार कोई नहीं है, बैसे भी मदद मोहताजों को चाहिए. वह मोहताज नहीं, अभी भी ताक़त हासिल कर सकते है, बेदारी की ज़रुरत है, हिम्मत करके मुस्लिम से हट कर मोमिन हो जाएँ..
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