Wednesday 26 October 2016

बांग-ए-दरा 132



 बांग ए दरा 
लामतनाही कायनात 

आसमान कोई चीज़ नहीं होती, ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, 
५०० किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफत के साथ साथ बढ़ रही है. 
ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है. 
इस जदीद इन्केशाफ से बे खबर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, 
और बार बार इसके फट जाने की बात करता है,. 
अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , 
इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. जब कि ये सितारे ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ बह पड़ेंगी. 
है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया कहीं रुकी हुई हैं? 
कि बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है.
तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा, दख्ल तो नहीं है, 
इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात का इलज़ाम क्यूँ लगता रहता है 
कि उसने तुमको इस इस तरह से बनाया. 
इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि 
इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया. 
सब जानते हैं कि इस ज़मीन के तमाम मखलूक इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, 
कुरआन में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता?
इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक मुसलमान होना चाहिए. 
मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे खबर है.
अल्लाह कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, 
फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शाहिद ओ मशहूद एक है,
हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का.
(ग़ालिब)

तज़ादों से पुर इस अल्लाह को पूरी जिसारत से समझो, ये एक जालसाजी है, 
इंसानों का इंसानों के साथ, इस हकीकत को समझने की कोशिश करो. 
जन्नत और दोज़क्ज इन लोगों की दिमागी पैदावार है 
इसके डर और इसकी लालच से ऊपर उट्ठो. 
तुम्हारे अच्छे अमल और नेक ख़याल का गवाह अगर तुम्हारा ज़मीर है 
तो कोई ताक़त नहीं जो मौत के बाद तुम्हारा बाल भी बीका कर सके. 
औए अगर तुम गलत हो तो इसी ज़िन्दगी में अपने आमाल का भुगतान करके जाओगे.
मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"
आज कायनात की तमाम तर हुकूमत किसकी है? 
क्या अल्लाह इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?


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