Wednesday 12 October 2016

बांग-ए-दरा 120



बांग-ए-दरा

बागड़ बिल्ला 

नट खट बातूनी बच्चे से देर रात को माँ कहती है, बेटे सो जाओ नहीं तो बागड़ बिल्ला आ जाएगा. 
माँ की बात झूट होते हुए भी झूट के नफ़ी पहलू से अलग है. 
यह सिर्फ मुसबत पहलू के लिए है कि बच्चा सो जाए ताकि उसकी नींद पूरी हो सके, 
मगर यह बच्चे को डराने के लिए है.
क़ुरआन का मुहम्मदी अल्लाह बार बार कहता है, "मैं डराने वाला हूँ "
ऐसे ही माँ बच्चे को डराती है.
लोग उस अल्लाह से डरें जब तक कि सिने बलूगत न आ जाए, 
यह बात किसी फ़र्द या कौम के ज़ेहनी बलूगत पर मुनहसर करती है कि वह बागड़ बिल्ला से कब तक डरे.
यह डराना एक बुराई, जुर्म और गुनाह बन जाता है कि बच्चा बागड़ बिल्ला से डर कर किसी बीमारी का शिकार हो जाए, 
डरपोक तो वह हो ही जाएगा माँ की इस नादानी से. डर इसकी तमाम उम्र का मरज़ बन जाता है.
मुसलमान अपने बागड़ बिल्ला से इतना डरता है कि वह कभी बालिग ही नहीं होगा.
मूर्तियाँ जो बुत परस्त पूजते हैं, 
वह भी बागड़ बिल्ला ही हैं लेकिन उनको अधिकार है कि सिने- बलूगत आने पर 
वह उन्हें पत्थर मात्र कह सकें, उन पर कोई फ़तवा नहीं, मगर मुसलमान अपने हवाई बुत को कभी बागड़ बिल्ला नहीं कह सकता.
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