Friday 21 October 2016

बांग-ए-दरा 129




बांग ए दरा 

 तराशा हुआ झूट 

कुफ्फार कहते हैं - -
" ए मुहम्मद ये क़ुरआन तुम्हारा तराशा हुआ झूट है"
क़ुरआन मुहम्मद का तराशा हुवा झूट है, ये सौ फ़ीसदी सच है. 
कमाल का खमीर था उस शख्स का, जाने किस मिटटी का बना हुवा था वह, 
शायद ही दुन्या में पैदा हुवा हो कोई इंसान, तनहा अपनी मिसाल आप है वह. 
अड़ गया था अपनी तहरीक पर जिसकी बुनियाद झूट और मक्र पर रखी हुई थी. 
हैरत का मुकाम ये है की हर सच को ठोकर पर मरता हुवा, 
हर गिरफ़्त पर अपने पर झाड़ता हुवा, 
झूट के बीज बोकर फरेब की फसल काटने में कामयाब रहा. 
दाद देनी पड़ती है कि इस कद्र बे बुन्याद दलीलों को लेकर उसने इस्लाम की वबा फैलाई
 कि इंसानियत उस का मुंह तकती रह गई. 
साहबे ईमान लोग मुजरिम की तरह मुँह छिपाते फिरते. 
खुद साख्ता पैगम्बर की फैलाई हुई बीमारी बज़ोर तलवार दूर दराज़ तक फैलती चली गई. वक़्त ने इस्लामी तलवार को तोड़ दिया मगर इसकी बीमारी नहीं टूटी. 
इसके मरीज़ इलाज ए जदीद की जगह इस्लामी ज़हर पीते चले गए, 
खास कर उन जगहों पर जहाँ मुकामी बद नज़मी के शिकार और दलित लोग. 
इनको मजलूम से ज़ालिम बनने का मौक़ा जो मिला.
इस्लाम की इब्तेदा ये बतलाती है कि मुहम्मद का ख़ाब क़बीला ए क़ुरैश की अजमत क़ायम करना और अरब की दुन्या तक ही था, इस कामयाबी के बाद अजमी (गैर अरब) दुन्या इसके लूट का मैदान बनी, साथ साथ ज़ेहनी गुलामी के लिए तैयार इंसानी फसल भी. 
मुहम्मद अपनी जाबिराना आरज़ू के तहत बयक वक़्त दर पर्दा अल्लाह बन गए, 
मगर बजाहिर उसके रसूल खुद को कायम किया. 
वह एक ही वक़्त में रूहानी पेशवा, मुमालिक के रहनुमा और बेताज बादशाह हुए, 
इतना ही नहीं, एक डिक्टेटर भी थे, बात अगर जिन्स की चले तो राजा इन्दर साबित होते हैं. कमाल ये कि मुतलक़ जाहिल, एक कबीलाई फर्द. हठ धर्मी को ओढ़े-बिछाए, जालिमाना रूप धारे, जो चाहा अवाम से मनवाया, इसकी गवाही ये कुरआन और उसकी हदीसें हैं. 
मुहम्मद की नकल करते हुए हजारों बाबुक खुर्मी और अहमदी हुए मगर कोई मुहम्मद की गर्द भी न छू सका.
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