Wednesday 19 October 2016

बांग-ए-दरा 127




बांग ए दरा 

फतह मक्का के बाद 

मुहम्मद लगभग हाकिम बन चुके हैं, 
इनके मुँह से निकली हुई हर बात आयते क़ुरआनी हो जाती है. 
वह अल्लाह के रसूल की बजाए, अल्लाह उनका रसूल बन जाता है. 
नए रसूल की सियासी सूझ बूझ और तौर तरीकों के आगे पुराने 
 रसूल मुहम्मद का साया नज़र आता है. 
वह अपने गिर्द फैले हुए जाँ निसारों, चापलूसों और लाखैरों की 
शिनाख्त बड़ी महारत से करने लगे हैं. 
मक्का में वह कुफ़फ़ार का मुकाबिला जूनून और मसलेहत के साथ कर रहे थे 
और मदीने में मुनाफिक़ों का सामना जिसारत के साथ करते नज़र आते हैं. 
रसूल को अब भर्ती के मुसलमान नहीं चाहिएं. 
वह अपने मुँह लगे साथियों के मुँह में लगाम लगाने लगे हैं
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फ़ह्माइश 

आज जदीद क़द्रें आ चुकी हैं कि 'बिन माँगी राय' मत दो, क़ुरआन कहता है,
" एक दूसरे को हक की फ़ह्माइश करते रहो"
हक नाहक इंसानी सोच पर मुनहसर करता है, जो तुम्हारे लिए हक़ का मुक़ाम रखता है, वह किसी दूसरे के लिए नाहाक़ हो सकता है. उसको अपनी नज़र्याती राय देकर, फर्द को महेज़ आप छेड़ते हैं, जो कि अंततः झगडे  का सबब बन सकता है.
कुरानी तालीम का असर है कि मुसलामानों में तबलीग का फैशन बन गया है और इसकी जमाअतें बन गई हैं. यही तबलीग (फ़ह्माइश)जब जब शिद्दत अख्तियार करती है तो जान लेने और जान देने का सबब बन जाती है और इसकी जमाअतें तालिबानी हो जाती हैं.
इस्लाम हर पहलू से दुश्मने-इंसानियत है. अपनी नस्लों को इसके साए से बचाओ.
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