Thursday 27 October 2016

बांग-ए-दरा 133


बांग ए दरा 

अधूरा बयान 

कोई तालीम याफ़्ता शख्स अगर बोलेगा तो उसका एक एक लफ्ज़ बा मअनी होगा, 
चाहे वह ज्यादा बोलने वाला हो चाहे कम. इसके बर अक्स जब कोई अनपढ़ उम्मी बोलेगा, 
चाहे ज़्यादा चाहे कम, तो वह ऐसा ही होगा जैसा तुमने कुरआन में देखा. 
किसी मामूली वाकिए को अधूरा बयान करके वह आगे बढ़ जाता है, 
ये उम्मी मुहम्मद की एक निकम्मी अदा है. 
सूरह में लोगों को न समझ में आने वाली बातें या वाक़िया होते हैं. 
इनकी जानकारी का इश्तियाक तुम्हें कभी कभी आलिमो तक खींच ले जाता है. 
तुम्हारे तजस्सुस को देख कर आलिम के कान खड़े हो जाते हैं. 
इस डर से कि कहीं बन्दा बेदार तो नहीं हो रहा है? 
बाद में वह तुम्हारी हैसियत और तुम्हारे जेहनी मेयार को भांपते हुए 
तुम से क़ुरआनी आयातों को समझाता है. 
सवाली उसके जवाब से मुतमईन न होते हुए भी उसका लिहाज़ करता हुवा चला जाता है. 
उसमें हिम्मत नहीं कि वह आलिम से मुसलसल सवाल करता रहे 
जब तक कि उसके जवाब से मुतमईन न हो जाए.
एक वाक़िया है कि आग तापते हुए मुसल्मानो की काफिरों से कुछ कहा-सुनी हो गई थी
तो ये बात क़ुरआनी आयत क्यूं बन गई?
मुहम्मद का दावा है कुरआन अल्लाह हिकमत वाले का कलाम है.
क्या अल्लाह की यही हिकमत है?
आलिम के जवाब पर सवाल करना तुम्हारी मर्दानगी से बईद है. 
यही बात तुमको दो नम्बरी कौम बने रहने की वजह है.
तुम्हारे ऊपर कभी अल्लाह का खौफ तारी रहता है तो कभी समाज का. 
तुम सोचते हो .कि तुम खामोश रह कर जिंदगी को पार लगा लो.
इस तरह तुम अपनी नस्ल की एक खेप और इस दीवानगी के हवाले करते हो.

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