
बांग-ए-दरा
एक थे यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों (और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) मुश्तरका मूरिसे आला (मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम (और शायद ब्रह्म भी) .
बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, हम उनका बाइबिल प्रचलित नाम अब्राहम कहते हैं कि वह पथर कटे कबीले के गरीब बाप तेराह के बेटे थे, बाप बार कहता कि
बेटा ! हिजरत करो हिजरत में बरकत है, हो सकता है तुम को एक दिन दूध और शहेद वाला देश रहने को मिले.
आखिर एक दिन बाप तेराह की बात अब्राहम को लग ही गई,
अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) किया.
ख़ाके ग़रीबुल वतनी छानते हुए फिरअना (बादशाह) के दर पर पहुँचे, माहौल का जायज़ा लिया.
बादशाह ने दर पर आए मुसाफ़िरों को तलब किया, तीनों उसकी खिदमत में पेश हुए, अब्राहम ने सारा को अपनी बहेन बतला कर ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, वह उसकी चाचा ज़ाद बहेन थी भी, बादशाह ने सारा को मन्ज़ूर ए नज़र बना कर अपने हरम में शामिल कर लिया.
सारा हसीन थी.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला कि सारा अब्राहम की पत्नी है, तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बहार किया.
उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया जिससे वह मालदार हो गया.
सारा ने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी खादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ.
इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी कि वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बिया बान में छोड़ आया.
अब्राहम को उसके इलोही ने ख्वाब में दिखलाया कि इस्हाक़ की कुर्बानी दे और वह बच्चे इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया और आँख पर पट्टी बाँध कर हलाल कर डाला मगर जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह मेंढा होता है और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है.
मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को
''हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को देने-इब्राहीमी कहते हैं.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का पहला जुर्म और झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहेन बतलाया और उसको बादशाह की खातिर हरम के हवाले किया.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था,
दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था मेंढा ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा.
खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बचाई .
सोचिए कि हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का मेंढा बन जाना गैर फितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. अकीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे.
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पुरुषों पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - -
अल्ला हुम्मा सल्ले . . .
अर्थात '' ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर. बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है.''
मुसलमानों ! अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भो ज़ेहन में लाओ जिनका खूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हजारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए तूफानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक जिंदा रक्खा है.
क्या तुम उनको फरामोश करके मुहम्मद की गुमराहियों में पड़ गए हो? अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी कुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो?
शर्म से डूब मरो।
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