Saturday 17 September 2016

बांग-ए-दरा 94



बांग ए दरा 

ईमानी झांसे 

मैं वयस्कता से पहले ईमान का मतलब लेन देन के तकाजों को ही समझता था (और आज भी सिर्फ़ इसी को समझता हूँ) 
मगर इस्लामी समझ आने के बाद मालूम हुवा कि इस्लामी ईमान का अस्ल तो कुछ और ही है, वह है 'कलमा ए शहादत', अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना, 
कसमे-आम और कसमे-पुख्ता. 
इन बारीकियों को मौलाना जब समझ जाते है कि अल्लाह झूट को  कितना दर गुज़र करता है तो वह लेन देन की बेईमानी भरपूर करते हैं. 
मेरे एक दोस्त ने बतलाया कि उनके कस्बे के एक मौलाना, मस्जिद के पेश इमाम, मदरसे के मुतवल्ली क़ुरआन के आलिम, बड़े मोलवी, साथ साथ ग्राम प्रधान, रहे .
हज़रात ने कस्बे की रंडी हशमत जान का खेत पटवारी को पटा कर जीम का नुकता बदलवा कर नीचे से ऊपर करा दिया जो जान की जगह खान हो गया. हज़रात के वालिद मरहूम का नाम हशमत खान था. विरासत हशमत खान के बेटे, बड़े मोलवी साहब उमर खान की हो गई, हशमत रंडी की सिर्फ एक बेटी छम्मी थी(अभी जिंदा है), उसने उसको मोलवी के क़दमों पर लाकर डाल और कहा
" मोलवी साहब इस से रंडी पेशा न कराऊँगी , रहेम कीजिए, अल्लाह का खौफ़ खाइए - - - " मगर मोलवी का दिल न पसीजा उसका ईमान कमज़ोर नहीं था,
 बहुत मज़बूत था। 
उसके दो बेटे हैं, मेरे दोस्त बतलाते हैं दोनों डाक्टर है, और पोता कस्बे का चेयर मैन है। 
रंडी की और मदरसे की जायदादें सब काम आरही हैं. 
यह है ईमान की बरकत. 
मुसलामानों के इस ईमानी झांसे में हो सकता है गैर मुस्लिम इन से ज्यादा धोका खाते हों कि ईमान लफ्ज़ को इन से जाना जाता है.
अहद की बात आई तो तसुव्वुर कायम हुवा
 "प्राण जाए पर वचन न जाए" 
*****




No comments:

Post a Comment