Thursday 22 September 2016

बांग-ए-दरा 100




बांग ए दरा 


"अल्लाह के राह में क़त्ताल करो" 

कुरआन का यही एक जुमला तमाम इंसानियत के लिए चैलेंज है, जिसे कि तालिबान नंगे हथियार लेकर दुन्या के सामने खड़े हुए हैं. 
अल्लाह की राह क्या है? 
इसे कालिमा ए शहादत" ला इलाहा इल लिल लाह, मुहम्मदुर रसूल अल्लाह" यानी 
(एक आल्लाह के सिवा कोई अल्लाह आराध्य नहीं और मुहम्मद उसके दूत हैं) 
को आंख बंद करके पढ़ लीजिए और उनकी राह पर निकल पडिए 
या जानना चाहते हैं तो किसी मदरसे के तालिब इल्म (छात्र) से अधूरी जानकारी और वहां के मौलाना से पूरी पूरी जानकारी ले लीजिए.
जो लड़के उनके हवाले होते हैं उनको खुफिया तालीम दी जाती है. मौलाना रहनुमाई करते हैं और कुरान और हदीसें इनको मंजिल तक पहंचा देते हैं. मगर ज़रा रुकिए ... 
ये सभी इन्तेहाई दर्जे धूर्त और दुष्ट लोग होते है, 
आप का हिन्दू नाम सुनत्ते ही सेकुलर पाठ खोल देंगे, 
फ़िलहाल मुझ पर ही भरोसा कर सकते हैं. 
हम जैसे सच्चों को इस्लाम मुनाफिक़ कहता है 
क्यूंकि चेतना और ज़मीर को कालिमा पहले ही खा लेता है. 
जी हाँ ! यही कालिमा इंसान को आदमी से मुसलमान बनाता है 
जो सिर्फ एक कत्ल नहीं क़त्ल का बहु वचन क़त्ताल सैकडों, हज़ारों क़त्ल करने का फ़रमान जारी करता है. यह फ़रमान किसी और का नहीं अल्लाह में बैठे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह का होता है. 
अल्लाह तो अपने बन्दों का रोयाँ भी दुखाना नहीं चाहता होगा, अगर वह होगा तो बाप की तरह ही होगा. 
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