Tuesday 6 September 2016

बांग-ए-दरा 83




बांग ए दरा 


बे ईमानों का हरबा  इंशा अल्लाह 

मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल के लिए क़लम की क़सम खाता है ,
जिससे रसूल का  कोई वास्ता नहीं है.
वह इस बात की भी मुहम्मद को ये यकीन दिलाने के लिए कहता है कि
 आप जनाब दीवाने नहीं बल्कि आला ज़र्फ़ इंसान हैं, 
जैसे कि खुद मुहम्मद अपनी इस खूबियों से नावाकिफ हों. 
मुहम्मद की अय्यारी खुद इन आयतों का आईना दार हैं. 
मुहम्मद अपने दुश्मनों के लिए सल्वातें ही नहीं, गालियाँ भी अपने अल्लाह के ज़बानी सुनवाते हैं. मुसलामानों! क्या तुम सैकड़ों साल के पुराने क़बीलों से भी गए गुज़रे हो? 
जो इन बकवासों से इस शख्स को अपनी निगाहों से गिराए हुए थे. 
एक अदना सा बन्दा तुम्हारा खुदा और तुम्हारा रसूल बना हुवा है, 
वह भी इन गलीज़ आयतों की पूरी दलील और पूरे सुबूत के साथ.
जागो, वर्ना तुम्हारी मौत अनक़रीब लिखी हुई है. 
ज़माना तुम्हारी जेहालत का शर अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता. 
सादिक दुन्या में बातिल खुद अपने आप में घुट रहा है. 
क्या तुम कोई घुटन महसूस नहीं कर रहे हो? 
कुरानी सूरतों में कई  वाहियात सी मिसाल भी है कि
 "लोगों ने बगैर इंसा अल्लाह कहे रात को खेत काटने की बात ठानी, सुब्ह देखते हैं कि खेत में फसल गायब है". ताकीद और नसीहत है कि बिना इंशा अल्लाह कहे कोई वादा मत करो. 
ये इंशा अल्लाह बे ईमानो को काफी मौक़ा दिए हुए है कि वह मामले को टालते रहें.
इस इंशा अल्लाह में मुसलमानों की बाद नियती शामिल रहती है.

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