
बांग ए दरा
वज्दानी कैफ़ियत
क़ुरआन मुहम्मद की वज्दानी कैफ़ियत में बकी हुई ऊट पटाँग बातों का ऐसा मज्मूआ ए कलाम है जिसका कुछ जंगी फ़तूहात से इस्लामी ग़लबा कायम हो जाने के बाद इस का
मज़ाक उड़ाना जुर्म क़रार दे दिया गया.
जंगों से हासिल माले ग़नीमत ने इसे मुक़द्दस बना दिया.
फ़तह मक्का के बाद तो यह उम्मी की पोथी, शरीयत बन कर मुमालिक के कानून काएदे बन्ने लगी. इसके मुजरिमीन ओलिमा ने तलवार तले अपने ज़मीरों को गिरवीं रखना शुरू किया तो
इस मैदान में दौड़ का मुकाबला शुरू हो गया. शिकस्त खुर्दा हुक्मरानों और मजबूरो मज़लूम अवाम ने इसे तस्लीम करना शुरू कर दिया.
फूहड़ ज़बान, मुतज़ाद बातें, वज्द की बक बक, बे वक़अत क़िस्से, गढ़े हुए वाकए, बुग्ज़ और मक्र की गुफ्तुगू, झूट की सैकड़ों अक्साम को ढकने के लिए मुहम्मद ने इसे तिलावत की किताब बना दिया न कि समझने और समझाने की.
झूट की सदाक़त यह है कि वह अपना पुख्ता सुबूत अपने पीछे छोड़ जाता है. क़ुरआन को तहरीरी शक्ल में महफूज़ करने का मुहम्मद का कोई इरादा नहीं था, यह तो याददाश्त के तौर पर सीना बसीना क़बीलाई मन्त्र तक चलते रहने का सिलसिला था जो इसकी औकात है, मगर उस्मान गनी को तब झटका लगा जब इसके हाफिज़ जंगों में मारे जाने लगे. उनको लगा कि इस तरह तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि क़ुरआन को अगले सीने में मुन्तकिल करने वाला कोई मिले ही नहीं. इस तरह उन्हों ने क़ुरआन के बिखरे हुए नुस्खों को चमड़ों, छालों, पत्थर क़ी स्लेटों और कागजों पर जहाँ जैसा मिला इकठ्ठा किया. आधे से ज्यादा क़ुरआन रद्द हुवा बाक़ी मौजूदा आप के सामने है अपने झूट के हश्र को लिए खड़ा है.
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