Saturday 24 September 2016

बांग-ए-दरा 102




बांग ए दरा 
कसमें तकिया कलम 

मुसलमानों में अवाम से ले कर बडे बड़े मौलाना तक 
कसमें बहुत खाते हैं. 
खुद अल्लाह कुरान में बिला वजे कसमे खाता दिखाई देता है. 
अल्लाह कहता है वह तुम को कभी नहीं पकडेगा तुम्हारी उस बेहूदा कसमों पर जो तुम रवा रवी में खा लेते हो 
मगर हाँ जिसे दिल से खा लेते हो, 
इस पर जवाब तलबी होगी (इसे इरादी कसमें भी कहा गया है) 
फिर भी फ़िक्र की बात नहीं, वह गफूर रुर रहीम है. 
इस सिलसिले में नीचे दोनों आयतें हैं आयत २२६ के मुताबिक 
औरत से चार माह तक जिंसी राबता न रखने की अगर क़सम खा लो और उसपर कायम रहो तो तलाक यक लख्त फैसल होगा 
और इस बीच अगर मन बदल जाए या जिंसी बे क़रारी में वस्ल की नोबत आ जाए तो अल्लाह इस क़सम की जवाब तलबी नहीं करेगा. ये आयत का मुसबत पहलू है. 
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 ज़हरीली आयत
"निकाह मत करो काफिर औरतों के साथ जब तक कि वह मुसलमान न हो जाएँ 
और मुस्लमान चाहे लौंडी क्यूं न हो वह हजार दर्जा बेहतर है काफिर औरत से, 
गो वह तुम को अच्छी मालूम हो 
और औरतों को काफिर मर्दों के निकाह में मत दो, जब तक की वह मुसलमान न हो जाए, 
इस से बेहतर मुस्लमान गुलाम है"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत 221)
हमारे मुल्क में फिरका परस्ती का जो माहौल बन गया है उसको देखते हुए दोनों क़ौमों को ज़हरीले फ़रमान की डट कर खिलाफ वर्जी करना चाहिए. 
हिदुस्तान में आपसी नफ़रत दूर करने की यही एक सूरत है कि दोनों फिरके आपस में शादी ब्याह करें ताकि नई नस्लें इस झगडे का खात्मा कर सकें. 
कितनी झूटी बात है - - - मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. 
हम देखते हैं कि कुरआन की हर दूसरी आयत नफ़रत और बैर सिखला रही है. 
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