
हदीसी हादसे
बुखारी १४२९
मुहम्मद की हुलया
हसन बिन मालिक मुहम्मद की हुलया कुछ इस तरह बयान करते हैं - - -
क़द दरमियाना , न ज्यादा लम्बे , न पास्ता क़द ,
रंग चमकदार , न ज़्यादः गंदुमी न ज़्यादः सफेद ,
बाल न ज़्यादः सीधे , न ज़्यादः खमदार ,
जिस वक़्त वफात पाई थी , सर और रीश में गिनती के सफेद बाल थे
* वह गवाह जिसने मुलजिम को देखा नहीं और अदालत में खड़ा अकली गद्दा मार रहा है .
आज कल नातिया शायर इस गवाह से हज़ार गुना आगे बढ़ कर मुहम्मद की गवाही अपने कलाम में दे रहे है.
मुस्लिम - - - किताबुल शर्बतः
मुहम्मद कहते हैं कि कोई तुम में से खाना खाए तो अपने हाथ न पोछे , जब तक कि इसको चाट न ले या चटवा न ले , अपनी बीवी बच्चे या लौड़ी से जो बुरा न माने बल्कि खुश हो .
दूसरी जगह है कि खाने के बाद अपनी उँगलियाँ और रिकाबियाँ चाट कर साफ़ करना चाहिए . अगर नवाला गिर गया हो और जगह नजिस न हो तो कूड़ा करकट साफ़ करके इसे खा लेना चाहिए .शैतान के लिए नहीं छोड़ना चाहिए .
*आज की इस मुहज्ज़ब दुनिया में इस ग़ैर मुहज्ज़ब शरअ और कबीलाई तौर तरीके के लोग पाए जाते हैं जो औरों के साथ बैठ कर इस घिनावने तरीके पर अमल करते है जिसको मेडिकल साइंस इजाज़त नहीं देती है .
शैतान के वजूद को तस्लीम करने वाला पैगम्बर उसे भूकों मारने के मशविरे अपनी उम्मत को देता है जिस में ज़ुल्म और जब्र का सीगा छिपा हुवा है ,
बुख़ारी १४३९ आयशा अपने शौहर की सफाई में कहती हैं कि मुहम्मद ज़ाती बिना पर किसी से बदला नहीं लेते थे , मगर खुदाए बरतर के हुक्म में अगर कोताही हुई तो बदला ज़रूर लेते थे.
* बे शुमार वाकिए हैं कि मुहम्मद जाती मामलों में बदतरीन इन्तेकाम लेते थे मगर मामलों को अल्लाह का मामला साबित करने में अल्लाह बने मुहम्मद को कितनी देर लगती थी . दरपर्दा वह खुद को अल्लाह ही समझते थे.
दूसरी बात यह कि मुहम्मदी अल्लाह क्या इतना कमज़ोर है कि वह खुद अपना बदला नहीं ले पाता ? कोई अहमक ही अल्लाह का बदला लेगा .
ऐसी गुमराही में मुसलमान ही लगा हुवा है .
बुख़ारी १४५१
कुरैश परवर
मुहम्मद ने कहा कुरैश का यह क़बीला हम लोगों को हालाक कर देगा . लोगों ने कहा या रसूल अल्लाह ! ऐसे वक़्त में हम लोगों के लिए क्या हुक्म है ? मुहम्मद ने कहा काश ऐसे वक़्त में लोग उनसे परहेज़ करें तो बेहतर है .
* मुहम्मद ने अपने कबीले कुरैश के लिए तो ही सारे पापड़ बेले थे और वही पामाल हो जाएं तो ? उनको कुरैश की बद ख्वाही किसी हालत में गवारा नहीं . इनके लिए वह खुद को और अपनी उम्मत को कुर्बान कर सकते थे .
यही नहीं अगली हदीस १४५२ में वह यहाँ तक कहते हैं कि मेरी उम्मत चंद कुरैश लड़कों के हाथों हलाह होगी , मैं चाहूं तो उनकी वल्दियत बतला सकताहूं .
कुरैश और अरबी क़बीलों की लड़ाई में हम हिदुस्तानी मुब्तिला हैं , यह हैरत का मक़ाम है .
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