Saturday 5 November 2016

बांग-ए-दरा 141




बांग ए दरा 

गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी

अपने कलाम में नुदरत बयानी समझने वाले मुहम्मद क्या क्या बक रहे हैं कि
"पहाड़ो में चलने के लिए अल्लाह पैर पैदा कर देगा,"
"वह फुद्केंगे, लोग अचम्भा और तमाशा ही देखेगे, "
मुहम्मद ऊंटों और खजूरों वाले रेगिस्तानी थे,
गोया इसे भी अलामते क़यामत तसुव्वर करते हैं कि
"जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी"
छुट्टा घूमे या रस्सियों में गाभिन हो या अभागिन, ऊंटनी ही नहीं तमाम जानवर हमेशा आज़ाद ही घूमा फिरा करेंगे.
दरिया सालाना भड़कते ही रहते हैं.
ये कुरआन की फूहड़ आयतें जिनकी कसमें अल्लाह अपनी तख्लीक़ की नव अय्यत को पेशे नज़र रख कर खाता है
तो इसपर यकीन तो नहीं होता, हाँ, हँसी ज़रूर आती है.
मुसलामानों! क्या सुब्ह ओ शाम तुम ऐसी दीवानगी की इबादत करते हो?
कहाँ उसका कहना नहीं माना जाता? उसके हुक्म के बगैर तो पत्ता भी नहीं हिलता.
ये वही फ़रिश्ता है जिसे वह रोज़ ही देखते हैं जब वह अल्लाह की वहयी लेकर मुहम्मद के पास आता है, फिर उसकी एक झलक आसमान पर देखने की गवाही कैसी?
क़यामत के बाद जब ये दुन्या ही न बचेगी तो नसीहत का हासिल?
कुरआन पर हजारों एतराज़ ज़मीनी बाशिदों के है, जिसे ये ओलिमा मरदूद उभरने ही नहीं देते.
भोले भाले ऐ नमाज़ियो!
सबसे पहले गौर करने की बात ये है कि ऊपर जो कुछ कहा गया है, वह किसी इंसान के मुंह से अदा किया गया है
या कि किसी ग़ैबी अल्लाह के मुंह से?
ज़ाहिर है कि ये इंसान के मुंह से निकला हुवा कलाम है जो कि बद कलामी की हदों में जाता है.
क्या कोई खुदाई हस्ती इरशाद कर सकती है कि
".जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,"
अरबी लोग कसमें ज्यादा खाते हैं. शायद कसमें इनकी ही ईजाद हों. मुहम्मद अपनी हदीसों में भी कुरान की तरह ही कसमे खाते हैं. इस्लाम में झूटी कसमें खाना आम बात है, इनको अल्लाह मुआफ करता रहता है. अगर इरादतन क़सम खा लिया तो किसी यतीम या मोहताज को खाना खिला दो. बस. गौर करने की बात है कि जहाँ झूटी कसमें रवा हों वहां झूट बोलना किस क़दर आसन होगा? ये कुरान झूट ही तो है. क़यामत, दोज़ख, जन्नत, हिसाब-किताब, फ़रिश्ते, जिन और शैतान सब झूट ही तो हैं.
क्या तुम्हारे आईना ए हयात पर झूट की परतें नहीं जम गई हैं?
ये इस्लाम एक गर्द है तुमको मैला कर रहा है.
अपने गर्दन को एक जुंबिश दो, इस जमी हुई गर्द को अपनी हस्ती पर से हटाने के लिए.
अल्लाह कहता है "और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."
तो फिर दुन्या में कहाँ कोई बन्दा गुनाहगार हो सकता है, सिवाए अल्लाह के.
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