Monday 7 November 2016

बांग-ए-दरा 143





बांग ए दरा 

परेशानी ए  ख़याल 

मुझे हैरत होती है कि मुहम्मद के ज़माने में वह लोग थे जोकि कुरानी बकवासों को मुहम्मद का परेशान ख़याल कह कर दीवाने को फ़रामोश कर दिया करते थे. 
वह इस लग्वियात को मुहम्मद का जेहनी खलल मानते थे, ये बातें खुद कुरआन में मौजूद है, इस लिए कि मुहम्मद लोगों की तनक़ीद को भी क़ुरआनी फरमान का हिस्सा बनाए हुए हैं. 
वह लोग क़ुरआनी फ़रमूदात पर ऐसे ऐसे जुमले कसते कि 
अल्लाह की बोलती बंद हो जाया करती थी.
आज का इंसान उस ज़माने से कई गुना तालीम याफ्ता है,
जेहनी बलूगत भी लोगों की काफी बढ़ गई है,
तहकीकात और इन्केशाफत के कई बाब खुल चुके हैं,
फिर भी इन कुरानी लग्वियात को लोग अल्लाह का कलाम माने हुए हैं. 
और इस बात पर यकीन रक्खे हुए हैं.
जाहिल अवाम को मुआफ़ किया जा सकता है, मगर
कालेज के प्रोफ़ेसर, वोकला, जज और बुद्धि जीवी भी यक़ीन रखते हैं कि 
अल्लाह ने ही कुरआन को अपनी दानिश मंदी की शक्ल बख्शी .
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