Monday 14 November 2016

बांग-ए-दरा -- 147




बांग ए दरा 

वक़ेआ
वक़ेआ का मतलब है जो बात वाक़े (घटित ) हुई हो और वाक़ई (वास्तविक) हुई हो. 
इस कसौटी पर अल्लाह की एक बात भी सहीह नहीं उतरती. 
यहाँ वक़ेआ से मुराद क़यामत से है जोकि कोरी कल्पना है. 
वैसे पूरा का पूरा क़ुरआन ही क़यामत पर तकिया किए हुए है. 
सूरह में क़यामत का एक स्टेज बनाया गया है जिसके तीन बाज़ू हैं 
पहला दाहिना बाज़ू 
और दूसरा बायाँ बाज़ू 
तीसरा आला दर्जा (?). 
दाएँ तरफ़ वाले माशा अल्लह, सब जन्नती होने वाले होते हैं 
और बाएँ जानिब वाले कम्बख्त दोज़खी.
मजमें की तादाद मक्का की आबादी का कोई जुजवी हिस्सा लगती है
 जब कि क़यामत के रोज़ जब तमाम दुन्या की आबादी उठ खड़ी होगी तो 
ज़मीन पर इंसान के लिए खड़े होने की जगह नहीं होगी..
बाएँ बाजू वाले की ख़ातिर अल्लाह खौलते हुए पानी से करता है. 
इसके पहले अल्लाह ने जिस क़यामती इजलास का नक्शा पेश किया था, 
उसमें नामाए आमाल दाएँ और बाएँ हाथों में बज़रीया फ़रिश्ता बटवाता है. 
ये क़यामत का बदला हुवा प्रोगराम है.
याद रहे कि अल्लाह किसी भी बाएँ पहलू को पसंद नहीं करता 
इसकी पैरवी में मुसलमान अपने ही जिस्म के बाएँ हिस्से को सौतेला समझते हैं 
अपने ही बाएँ हाथ को नज़र अन्दाज़ करते हैं यहाँ तक हाथ तो हाथ पैर को भी, 
मुल्ला जी कहते हैं मस्जिद में दाखिल हों तो पहला क़दम दाहिना हो.
अल्लाह को इस बात की खबर नहीं कि जिस्म की गाड़ी का इंजन दिल, बाएँ जानिब होता है. मुहम्मदी अल्लाह कानूने फितरत की कोई बारीकी नहीं जानता .
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