Sunday 6 November 2016

बांग-ए-दरा 142


बांग-ए-दरा

अल्लाह की कहानी 

आज मैं आप के सामने मुहम्मद द्वारा गढ़ी एक कहानी को पेश कर रहा हूँ जिस में मुहम्मद की हकीकत है कि वह और उनका अल्लाह कितने अधकचरे थे। इसमें देखने क़ि बात ये है क़ि इसके तर्जुमान ने अल्लाह और मुहम्मद क़ि कितनी मदद की है, कहानी को एक बार ब्रेकट में दिए गए लाल रंग को छोड़ कर पढ़िए, दूसरी बार इस के साथ पढ़िए।आप को अंदाज़ा हो जायगा कि इन ओलिमा ने झूट को सच का रूप देने में इस्लाम की कितनी सहायता क़ि है।

''और(वह वक़्त याद करो) जब मूसा ने अपने नौकर से फ़रमाया कि मैं(इस सफ़र में) बराबर चला जाऊँगा, यहाँ तक कि इस मौके पर पहुँच जाऊँ जहाँ दो दरया आपस में मिले हैं, या(यूं ही) ज़माना-ए दराज़ तक चलता रहूँगा. पास जब (चलते चलते) दोनों के जमा होने के मौके पर पहुँचे, अपनी मछली को दोनों भूल गए और उस (मछली) ने अपनी राह ली और चल दी। फिर जब दोनों (वहां से) आगे बढ़ गए (तो मूसा ने), अपने नौकर से फ़रमाया कि हमारा नाश्ता लाओ हमको तो इस सफ़र में( यानी आज की मंज़िल में) बड़ी तकलीफ पहुंची. (नौकर ने) कहा कि (लीजिए) देखिए (अजीब बात हुई ) जब हम उस पत्थर के करीब ठहरे थे सो मैं (उस) मछली (के तज़करे) को भूल गया और मुझको शैतान ही ने भुला दिया, कि मैं इसका ज़िक्र करता और (वह किस्सा ये हुवा कि) उस (मछली) ने (ज़िदा होने के बाद) दरया में अजीब तौर पर अपनी राह ली. (मूसा ने हिकायत सुन कर) फ़रमाया यही वह मौक़ा है जिसकी हम को तलाश थी. सो दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए उलटे लौटे. सो (वहां पहुँच कर) उन्हों ने हमारे बन्दों में से एक बन्दे (यानी खिज़िर) को पाया जिनको हमने अपनी (ख़ास) रहमत (यानी मक़बूलियत) दी थी और उनको हमने अपने पास से (एक ख़ास तौर का) इल्म सिखलाया था. मूसा ने (उनको सलाम किया और) उन से फ़रमाया कि क्या मैं आप के साथ रह सकता हूँ? इस शर्त से कि जो इल्मे-मुफ़ीद को (मिन जानिब अल्लाह) आप को सिखलाया गया है, इस में से आप मुझको भी सिखला दें. (इन बुज़ुर्ग ने) जवाब दिया आप को मेरे साथ (रह कर मेरे अफाल पर) सब्र न होगा. और (भला) ऐसे उमूर पर कैसे सब्र करेगे जो आप के अहाते-वाकिफ़यत से बाहर हो. (मूसा ने) फ़रमाया आप इंशा अल्लाह हम को साबिर (यानी ज़ाबित) पाएँगे. और मैं किसी बात में आप के खिलाफ हुक्म नहीं करूँगा, (इन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाया (कि अच्छा) अगर आप मेरे साथ रहना चाहते हैं तो (इतना ख़याल रहे कि) फिर मुझ से किसी बात के निसबत कुछ पूछना नहीं, जब तक कि उसके मुतालिक मैं खुद ही इब्तेदाए ज़िक्र न कर दूं . फिर दोनों (किसी तरह) चले, यहाँ तक कि जब कश्ती में सवार हुए तो (इन बुज़ुर्ग ने) इस कश्ती में छेद कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया कि क्या आप ने इस कश्ती में इस लिए छेद किया (होगा) है कि इसके बैठने वालों को गर्क़ करदें? आप ने बड़ी भारी (यानी खतरा की) बात की. (इन बुज़ुर्ग ने) कहा क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया (मुझको याद न रहा था सो) आप मेरी भूल (चूक) पर गिरफ़्त न कीजिए और मेरे इस मुआमले में कुछ ज़्यादा तंगी न डालिए.
फिर दोनों (कश्ती से उतर कर आगे) चले, यहाँ तक कि जब एक (कमसिन) लड़के से मिले तो (इन बुज़ुर्ग ने) उसको मर डाला . मूसा (घबरा कर) कहने लगे कि आपने एक बेगुनाह को जान कर मार डाला (और वह भी) बे बदले किसी जान के, बे शक आप ने (ये तो) बड़ी बेजा हरकत की. (उन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाया क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ से सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया कि ( खैर अब के और जाने दीजिए) अगर इस (मर्तबा) आप से किसी अम्र के मुतालिक कुछ पूछूं तो आप मुझको अपने साथ न राखिए. बेशक आप मेरी तरफ से उज़र (की इन्तहा) को पहुँच चुके हैं. फिर दोनों (आगे) चले फिर जब एक गाँव वालों पर गुज़र हुवा तो वहां वालों से खाने को माँगा कि (हम मेहमान है) सो उन्हों ने उनकी मेहमानी से इंकार कर दिया. इतने में इनको वहाँ पर एक दीवार मिली जो गिरा ही चाहती थी कि फिर उन बुज़ुर्ग ने उसको (हाथ के इशारे से) सीधा कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया अगर आप चाहते तो इस (काम) पर कुछ उजरत ही ले लेते.(उन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाय कि अब ये वक़्त हमारे और आप के अलहदगी का है ( जैसा कि आपने खुद शर्त की थी) मैं उन चीज़ों की हकीकत आप को बतलाए देता हूँ जिन पर आप से सब्र न हुवा. जो कश्ती थी वह चन्द आदमियों की थी जो (इसके ज़रीए) इस दरया में मेहनत (मजदूरी) करते थे सो मैं ने चाहा कि इसमें ऐब डाल दूं और (वजेह इसकी ये थी कि) इन लोगों के आगे की तरफ़ एक (ज़लिम) बादशाह था जो हर (अच्छी) कश्ती को ज़बरदस्ती पकड़ रहा है. और रहा वह लड़का तो उसके माँ बाप ईमान दार थे सो हमको अंदेशा (यानी तहकीक) हुवा कि ये इन दोनों पर सर कशी और कुफ्र का असर न डाल दे. पस हम को ये मंज़ूर हुवा कि बजाए इसके कि इनका परवर दिगार इनको ऐसी औलाद दे जो पाकीज़गी (यानी दीन) में इस से बेहतर हो और ( माँ बाप के साथ) मुहब्बत करने में इस से बेहतर हो. और रही दीवार, सो वह दो यतीम बच्चों की थी जो इस शहर में (रहते) हैं और उस (दीवार) के नीचे उन का कुछ माल मदफून था (जो उनके बाप से मीरास में पहूंचा है) और उनका बाप (जो मर गया) एक नेक आदमी था. सो आप के रब ने अपनी मेहरबानी से चाहा कि वह दोनों अपने जवानी (की उम्र) को पहुँचें और अपना दफीना निकल लें. आपके रब की रहमत से और (ये सारे काम मैं ने ब-अल्हाम इलाही किए हैं इन में से) कोई काम मैं ने अपनी राय से नहीं किया. लीजिए ये है हक़ीक़त इन (बातों) की जिन पर आप से सब्र न हो सका.



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