Sunday 27 November 2016

बांग-ए-दरा 158




बांग ए दरा 

''और जान लो जो शै बतौर गनीमत तुम को हासिल हो तो कुल का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल का है और आप के क़राबत दारों का है और यतीमो का है और गरीबों का है और मुसाफिरों का है, अगर तुम अल्लाह पर यक़ीन रखते हो तो.''
सूरह इंफाल ८ नौवाँ परा आयत ( ३२ - ३९ - ४१)

मैं एक बार फिर अपने पाठकों को बतला दूं कि जंग में लूटे हुए माल को मुहम्मद ने माले गनीमत नाम दिया और इसको ज़रीया मुआश का एक साधन करार दिया.
यह बात पहले लूट मार और डकैती जैसे बुरे नाम से जानी जाती थी जिसको उन्होंने वाहियों के नाटक से अपने ऊपर जायज़ कराया. माले गनीमत के बटवारे का कानून भी अल्लाह बतलाता है ,
वह अपना पांचवां हिस्सा आसमान से उतर कर ले जाता है, उसके बाद यतीमों, गरीबों और मुसफिरून का हिसा कायम करके रसूल अपने यहाँ रखवाते, 
कहीं कोई इदारह ए फलाह ओ बहबूद उनकी ज़िन्दगी में इनके लिए कायम नहीं हुवा. 
खुद अपने मुसाहिबों में तकसीम करके अपनी शान बघारते, 
जो बुनयादी फायदे होते उससे कुरैशियो कि जड़ें मज़बूत होती रहतीं. 
उनकी मौत के बाद ही उनकी सींची हुई बाग़ कुरैशियों के लिए लहलहा उट्ठी, अली हसन, हुसैन और यजीद इस्लामी शहजादे बन कर उभरे. कुछ रद्दे-अमल में क़त्ल हुए और कुछ आज तक फल फूल रहे हैं.
हमें गम है कि हम न अरब हैं, 
हम न कुरैश हैं
और हम न अल्वी न यजीदी हैं, 
हम भारतीय हैं, हम भला इस्लाम कि ज़द में आकर क्यों इसके शिकार बने हुए है?




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