Friday 18 November 2016

हदीसी हादसे ४३६




हदीसी हादसे 

बुख़ारी १४०२ 
मुहम्मद कहते हैं 
"एक शख्स अपनी तहबन्द लुथड़ाते हुए ज़मीन पर चल रहा था . अल्लाह तअला ने उसे ज़मीन में धंसा दिया .क़यामत तक यूँ ही वह ज़मीं में धंसता रहेगा ."  
* मुल्ला अपने रसूल की बात को इस तरह साबित करते हैं कि अगर यकीन न हो तो कानों में उंगलियाँ ठूंस कर उस की धँसने की आवाज़ को सुन सकते हो. 
पिछली हदीसों में था कि कुरता ज़मीन पर लुथड़े तो जन्नती होने की अलामत है . मुहम्मद की कठ बैठियों में भी कोई ताल मेल नहीं . जो उनके मुंह से निकला, वह मुसलमानों के लिए हदीस शरीफ हो गया .आज कल मुल्लाओं की हुलिया इसी हदीस के असर में देखी जा सकती है . ज़माने से अलग कार्टून नुमा .

मुस्लिम - - -किताबुल अश्रबता 
मुहम्मद कहते हैं जब रात की तारीकी छा जाए तो बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने देना चाहिए , क्योंकि शैतान इस वक़्त फ़ैल निकलते हैं , फिर जब एक घडी रात गुज़र जाए तो  इनको छोड़ दो और दरवाज़ा बंद कर दो और अल्लाह तअला का नाम लो , इस लिए कि शैतान बंद दरवाजे नहीं खोलता और अपनी मुश्कों पर डाट लगा दो और अल्लाह का नाम लो . अगर कुछ बर्तन ढकने को न मिले तो इस आड़ा कर के कुछ रख दो . अपने चरागों को बुझा दो .
* यह हिदायत उस ज़माने के तौर तरीके रहे होंगे , मगर क्या इस ज़माने के लिए यह बातें निसाब ए हयात बनाई  जा सकती है ? उस वक़्त भी जगे हुए लोग थे जिनकी पैरवी हुवा करती थी और लाखैरे भी थे जिनके सरदार मुहम्मद थे , उनकी उम्मत आज तक उनकी पैरवी करती चली आ रही है .
बुख़ारी १४०७ 
ख़िलाफ़त कुरैश के लिए 
मुहम्मद कहते है 
"जब तक कुरैश में से दो लोग भी बाकी बचेंगे , ख़िलाफ़त कुरैश के हाथों में ही होगी "
** सच पूछिए तो इस्लाम की रूह में मुहम्मद का ख्वाब अपने क़बीले को सरफ़राज़ करने तक महदूद था . वाक़िया है कि मुहम्मद ने सबसे पहले बनी हाशिम को इकठ्ठा करके दरपर्दा मीटिंग की थी और कहा था कि
" तुम लोग मुझे पैगम्बर तस्लीम कर लो तो मेरे लिए आसान हो जाएगा की मैं रसूल अल्लाह बन जाऊं , मैं अगर अपने मंसूबे में कामयाब हुवा तो इसका फ़ायदा तमाम कुनबे को मिलेगा और अगर नाकाम रहा तो नुकसान सिर्फ मेरा होगा की मार दिया जाऊँगा । 
मेरी कामयाबी पर बनी हाशिम क़ुरैश में बरतर होंगे , क़ुरैश अहले अरब में बरतर होगे , अरब पूरी दुन्या में बरतर होगा और मक्का दुन्या का मरकज़ बन जाएगा और काबा दुन्या की इबादत गाह . इससे अहले मक्का क़यामत तक फ़ैज़याब होते रहेंगे . "
बनी हाशिम ने मुहम्मद की तजवीज़ को ठुकरा दिया और आजके मुसलमानों की तरह ही अपने आबाई दीन पर कायम रहने की क़सम खाई . मुहम्मद की उलटी फ़ज़ीहत हुई , लोगों में उनके लिए नफ़रत का बाब खुल गया .
जब यह हरबा मुहम्मद का कामयाब न हुवा तो अपनी बीवी खदीजा को लेकर मक्र की राह चुनी . ग़ार हिरा में बैठ कर मंसूबा बंदी करते और खुद पर वाहियों (ईश वाणी ) का खेल खेलना शरू किया .
क़ुरैश ही थे जिन्होंने इनकी भरपूर मुखालिफत की थी , कामयाबी के बाद मुहम्मद उनको नवाज़ रहे हैं की उनकी विरासत उनके खानदान में ही रहे .
हम लोग कुरैशियों के जेहनी गुलाम है . अफ़सोस कि कल के वहशी , लड़ाके और जाहिल क़बीले की गुलामी को हम ओढ़ बिछा रहे है. 


बुख़ारी १ ३ ९४ 
मुख़ालिफ़त बराय मुख़ालिफ़त 
मुहम्मद कहते हैं कि यहूदी और ईसाई अपने बाल को रंगीन नहीं करते , तुम लोग इनकी मुख़ालिफ़त में अपनी दाढ़ियों को रंगीन किया करो .
* यह मुमकिन होता तो मुहम्मद मुसलामानों को मुख़ालिफ़त के बिना पर पैर के बजाए हाथों से चलने की राय देते. मुसलमान अकसर भडुओं की तरह अपने बालों और दाढ़ियों को सुनहरे खिजाब में रंगे रहते है
मुस्लिम - - - किताबुल अक़्फ़िया 
मरदूद अवाम 
आयशा कहती है की उसके पैग़म्बर शौहर ने कहा ,
"जो शख्स ऐसा काम करे जिसके लिए मेरा हुक्म न हो , वह मरदूद है ."
किस कद्र हौसले बढ़ गए थे उस शख्स के कि आलम ए इंसान को अपनी ज़ेहनी गुलामी में कर लेना चाहता था . वह भी अपनी जिहालत और जारहय्यत के ज़ेर ए असर लाकर . इंसानी गैरत को कुचल डालने वाले नाक़्बत अंदेश को तारीख़ जितनी भी बड़ी सज़ा दे कम है. 
मुहम्मद को तो ज़िन्दगी में जज़ा ही जज़ा मिली , सज़ा तो उनको मिली जो इनके झांसे में आए . पहले भी मार खा खा कर मुसलमान हुए और अब मुसलमान होने के नाते सारे ज़माने की मार खा रहे हैं . 



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