
हदीसी हादसे
बुख़ारी १४५७+१७५५ सकीना बादलों में
हदीस है की एक साहब सूरह कुहफ की तिलावत कर रहे थे कि उनका घोडा जो करीब बंधा था , बिदकने लगा। उन्हों ने सलाम फेर कर इसकी वजह जाननी चाही तो बादलों में सायाए फुगन मालूम पड़ा . इन साहब ने वाकिए को मुहम्मद से अर्ज़ किया . मुहम्मद ने कहा पढ़ते रहते तो बेहतर होता क्योंकि ये सकीना थीं जो तिलावत ए कुरान के वक़्त नाजिल हुई थीं .
*मुहम्मद बर जश्ता झूट बोलने में कितने माहिर थे , बस मौक़ा मिलने की देर होती . उनकी उम्मत चार क़दम आगे निकल जाती है जब ऐसी हदीसों में सच्चाई तलाश कर लेती है. मुहम्मद रोज़ बरोज़ कामयाबियों के जीने चढ़ते जा रहे हैं , अपने आल औलाद को कन्धों पर लादे . उसी एतबार से मुसलमान पाताल में समाता चला जा रहा
* हाँ ! वह वक़्त यक़ीनन आने वाला है , बल्कि आ भी गया है . मगर यह बात ग़लत है कि उनको इमाम नहीं मिलते बल्कि इमाम तो इफरात हैं कि हर मुसलमान पर एक की जगह दो दो हैं। यही इमाम इनका खून चूस चूस कर इनको जेहनी तौर पर मुर्दा बनाए हुए हैं .
बुख़ारी १४१७
मुहम्मद अपनी गवाही के साथ कहते हैं कि जिस शख्स ने सब से पहले सांड छोड़ने की रस्म निकली वह इब्न आमिर खज़ाआ है, मैं ने दोज़ख़ में उसको अपनी आतें घसीट कर चलते देखा .
* इब्न आमिर खज़ाआ अगर पहला शख्स था, सांड को छोड़ने की ईजाद को कायम करने वाला, तो उसका दुन्याए इंसानियत पर एहसान है.अगर नर मवेशी आकता (बधिया) न हुए होते तो तमाम धरती पर जंगल राज होता .
मुहम्मदी उम्मत को लज़ीज़ गोश्त कहाँ से नसीब होता .
मुहम्मद झूट बोलने में किस कद्र माहिर हो गए थे कि हर जुमला उनका कुछ न कुछ झूट में लिप्त होता . . जनाब जीते जी जन्नत की सैर कर रहे हैं और अपने से पहले मरे लोगों को पहचान कर उनके हालात बयां करते हैं .
मुसलमान इनकी झूट में जी रहे हैं .
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