Tuesday 15 November 2016

बांग-ए-दरा 148


बांग ए दरा 

सदाक़त की चिंगारी 
आज क़ुरआनी बातों से क्या एक दस साल के लड़के को भी बहलाया जा सकता है?
मगर मुसलमानों का सानेहा है कि एक जवान से लेकर बूढ़े तक इसकी आयतों पर ईमान रखते हैं. वह झूट को झूट और सच को सच मान कर अपना ईमान कमज़ोर नहीं करना चाहते, 
वह कभी कभी माहौल और समाज को निभाने के लिए मुसलमान बने रहते है. 
वह इन्हीं हालत में ज़िन्दगी बसर कर देना चाहते है. 
ये समझौत इनकी खुद गरजी है , वह अपने नस्लों के साथ गुनाह कर रहे है, 
इतना भी नहीं समझ पाते. इनमें बस ज़रा सा सदाक़त की चिंगारी लगाने की ज़रुरत है. 
फिर झूट के बने इस फूस के महल में ऐसी आग लगेगी 
कि अल्लाह का जहन्नुम जल कर ख़ाक हो जाएगा.
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हुकूमत अल्लाह की
मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"
आज कायनात की तमाम तर हुकूमत किसकी है? 
क्या अल्लाह इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?
नमाज़ियो !
मुहम्मद की वज़अ करदा मन्दर्जा बाला इबारत बार बार ज़बान ए उर्दू में दोहराओ, 
फिर फ़ैसला करो कि क्या ये इबारत काबिले इबादत है? 
इसे सुन कर लोगों को उस वक़्त हंसी आना तो फितरी बात हुवा करती थी , जिसकी गवाही खुद सूरह दे रही है, 
आज भी ये बातें क्या तुम्हें मज़हक़ा खेज़ नहीं लगतीं ? 
बड़े शर्म की बात है इसे तुम अल्लाह का कलाम समझते हो और उस दीवाने की बड़ बड़ की तिलावत करते हो. 
इससे मुँह मोड़ो ताकि कौम को इस जेहालत से नजात की कोई सूरत नज़र आए. 
दुन्या की २०% नादानों को हम और तुम मिलकर जगा सकते हैं. 
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