Wednesday 1 June 2016

Hadeesi Hadse 211



हदीसी हादसे 
बुखारी २८७ 
झूठे अनस से हदीसों कीभरमार है , कहता है - --
"मुहम्मद के यहाँ आए दो सहाबी अँधेरी रात में वापस जब अपने घर के तरफ़ चले तो अचानक दो चरागों की रौशनी नमूदार हुई और दोनों के हमराह हो गई. जब यह दोनों अलग होकर अपने अपने घरों के रास्ते हुए तो दोनों रौशनियाँ अलग अलग हो कर उनकी रहनुमाई करने लगीं, हत्ता कि वह अपने अपमे घरों तक पहुँच गए." 
* अनस की बात गैर फ़ितरी है. इन्हीं बातों पर यकीन करके मुसलमान अपनी पुरानी दुन्या में पड़ा हुवा है. करामाती हर झूटे उमूर को सच मानता है, नतीजतन वह अपनी औलादों को लेकर पस्मान्दगी को सर पे रखे हुए है. याद रखें कि मुहम्मद हिजरत में किसी मुरदार जानवर कि चमड़ी पा गए थे और उसे चबाने और चूसने लगे. अपने लिए कोई मुअज्ज़ा न कर सके. किसी चारागी रौशनी ने उनका साथ न दिया.

बुख़ारी २४५-४६ 
शोख आयसा कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ में होते तो मैं क़िबला जानिब पैर करके लेट जाती. सजदा करके वह इशरा करते तो मैं पैर समेट लेती, जब वह सजदे में जाते तो फिर पैर उसी तरह कर लेती. 
दूसरी हदीस में कहती हैं कि जब मुहम्मद नमाज़ पढ़ते तो मैं उनके सामने जनाज़े की तरह पड़ी रहती. 
*बूढा रसूल कमसिन बीवी की तमाम अदाएं झेलता था और अपने रचे क़ानून क़ायदे से बेनयाज़ हो जाता. 

बुखारी २६३ 
बहरीन से माले-ग़नीमत का मुहम्मदी हिस्सा आया तो मुहम्मद ने इसे मस्जिद में रखवा दिया. वक़्त-मुक़रर्रा पर मस्जिद गए तो इधर कोई तवज्जो न किया. बाद नमाज़ के इधर जब आए तो चचा अब्बास ने उनसे अपना हिस्सा और अपने बेटे का हिस्सा तलब क्या . 
मुहम्मद ने कहा लेलो. अब्बास ने अपने चादर में इतना मॉल भरा कि उसको उठा कर अपने सर पर रख न सके, इस के लिए मुहम्मद से मदद चाही  जिसे मुहम्मद ने इंकार कर दिया, गरज माल को कम करके जितना उठा सके, उठा कर ले गए. मुहम्मद अपने लालची चचा को जाते हुए तब तक देखते रहे कि जब तक वह नज़र से ओझल न हो गए. 
गौर तलब है कि इसी लालची की नस्लें इक दौर-हुक्मरान, इक दौर बने. इक अब्बासी दौर की हुक्मरान बने. 
इस हदीस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि मरकज़ में बैठे मुहम्मद माले -गनीमत (लूट पट के माल) को कैसे अपने ख़ानदान में तक़सीम करते. 
लूट पाट का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और मुहम्मद का होता और ४/५ हिस्सा लुटेरों का होता. इस्लाम इस तरह से उरूज पर आया जिसे तालिबान आज भी जारी रखना चाहते हैं. 
बुखारी २३३ 
वाकिया है कि मुहम्मद एक बार सिर्फ तहबन्द पहन कर काबा की मरम्मत कर रहे थे कि एक पत्थर उठाने में उनकी तहबंद दरपेश आ रही थी, ये देख कर उनके चाचा अब्बास ने कहा बेटा !तहबन्द उतार कर काँधे पर रख लो तो आसानी हो जाए. मुहम्मद ने वैसा ही किया यानी बरहना हो गए. उसके बाद वह बेहोश होके गिर पड़े. मुहम्मद कहते हैं कि उसके बाद मैं कभी भी नंगा न हुवा. 



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