Wednesday 8 June 2016

Hadeesi Hadse 212




हदीसी हादसे 

बुखारी ३५३-३५४-३५५ 

इस्लाम का शुरुआती दौर था, लोग मुहम्मद के मस्जिद में इकठ्ठा होते और नमाज़ हो जाया करती. मुहम्मद के मफरूज़ा मेराज का मुआमला जब दर पेश हुआ तो उनके लिए आल्लाह से जो तौफ़ा मिला वह उम्मत को दिन में पाँच बार नमाज़ें थीं. 
मुहम्मद ने मुसलमानों को नमाज़ों में मुब्तिला रखने के लिए नमाज़ों को दिन में पाँच बार मसरूफ रख्खा. मुसलमानों को वक़्त मुक़रररा पर मस्जिद में हाज़िर होने का क्या तरीक़ा हो? 
एक दिन मस्जिद में लोगों की मीटिग हुई, लोगों ने अपने अपने तरीक़े सुझाए, किसी ने कहा नससारा की मानिंद नाक़ूस फूँका जाए, किसी ने यहूदियों की तरह सींग बजाने का सुझाव दिया. 
उमार बोले बांग देना ठीक रहेगा, न कि किसी की नकल. 
मुहम्मद को बात पसंद आई, बाँग के बोल मुरततब किए गए और इसे नाम दिया गया ,
"अज़ान". 
मुहम्मद ने बिलाल से कहा उट्ठो अज़ान दो. 
इसके बाद अज़ान के पाखंड गढ़े गए. अज़ान की अज़मत और बरकत तराशे गए, यहाँ तक कि मुसलमान बच्चों के कानों में पहली आवाज़ इस झूट की फूँकी जाती है कि - - - 

" मै गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं" 
अज़ान के तमाम बोल बुनयादी तौर पर झूट हैं. 
मुहम्मद ५५ वीं हदीस में कहते हैं कि अज़ान की आवाज़ सुन कर शैतान गूज मरता (पादता) हुवा भागता है और इतनी दूर तक चला जाता है जहाँ कि अज़ान की आवाज़ न पहुंचे. अज़ान ख़त्म होते ही वह फिर महफ़िल में आ धमकता है. 
मुहम्मद की अक्ल पर तरस आती है कि शैतान पूरी मस्जिद में बदबू फैलता हुवा जाता है, इसी बदबू में मुसलमान इबादत करते हैं. 
मुहम्मद कहते हैं कि शैतान नमाजियों को नमाज़ में बहकता है, हत्ता कि वह भूल जाते हैं कि कितनी रिकत पढ़ी? 
दर असल नमाज़ के एकांत में जेहन इंसानी भटक कर कहीं और चला जाता है, प्रोग्रामिंग करने लगता है कि आज क्या करना है,किस्से मिलना है . . . वगैरा वगैरा. 
इसी अज़ानी अज़मत में मुहम्मद कहते है जो मोमिन अज़ान की आवाज़ सुनते है, क़यामत के दिन जिन्न ओ इन्स उसके गवाह होंगे. 
अनस कहता है जब मुहम्मद किसी बस्ती पर हमला करने इरादा करते तो सुब्ह तह इंतज़ार करते कि बस्ती से अज़ान की आवाज़ आती है या नहीं, अगर आवाज़ न आती तो बस्ती कि गारत गरी फ़रमाते. 



No comments:

Post a Comment