Wednesday 8 June 2016

बांग-ए-दरा -3



बांग-ए-दरा
इस्लाम

*इस्लाम इसके सिवा और कुछ भी नहीं क़ि यह एक अनपढ़ मुहम्मद की जिहालत है भरी, ज़ालिमाना तहरीक है. आज इसके नुस्खे सड़ गल कर गलीज़ हो चुके हैं, इसी गलाज़त में पड़े हुए हैं ९९% मुसलमान.
*कुरान सरापा बेहूदा और झूट का पुलिंदा है. इतिहास की बद तरीन तस्नीफे-खुराफ़ात .
*मुहम्मद ने निहायत अय्यारी से कुरआन की रचना की है जिसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर रख कर खुद अलग बैठे तमाश बीन बने रहते हैं.
*मुहम्मद एक कठमुल्ले थे जिसका सुबूत उनकी हदीसें हैं.
*कुरआन की हर आयत मुसलामानों की शह रग पर चिपकी जोंक की तरह उनका खून चूस रही हैं.
*वह जब तक कुरआन से मुंह नहीं फेरता, और उसके फ़रमान से बगावत नहीं करता, 
इस दुनिया में पसमान्दा कौम के शक्ल में रहेगा और दीगर कौमो का सेवक बना रहेगा.
*कुरआन के फायदे मक्कार ओलिमा गढ़े हुए हैं जो महेज़ इसके सहारे गुज़ारा करते हैं 
और आली जनाब भी बने रहते हैं..
*मुसलामानों! इन ओलिमा से उतनी ही दूरी कायम करो जितनी दूरी सुवरों से रखते हो. 
यही तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं।

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