Saturday 25 June 2016

बांग-ए-दरा -16



बांग-ए-दरा

अंडे में इनक़्लाब

इंसानी जेहन जग चुका है और बालिग़ हो चुका है. इस सिने बलूगत की हवा शायद ही आज किसी टापू तक न पहुँची हो, वगरना रौशनी तो पहुँच ही चुकी है, यह बात दीगर है कि नसले-इंसानी चूजे की शक्ल बनी हुई अन्डे के भीतर बेचैन कुलबुलाते हुए, अंडे के दरकने का इन्तेज़ार कर रही है. मुल्कों के हुक्मरानों ने हुक्मरानी के लिए सत्ता के नए नए चोले गढ़ लिए हैं. कहीं पर दुन्या पर एकाधिकार के लिए सिकंदारी चोला है तो कहीं पर मसावात का छलावा. धरती के पसमांदा टुकड़े बड़ों के पिछ लग्गू बने हुए है. हमारे मुल्क भारत में तो कहना ही क्या है! कानूनी किताबें, जम्हूरी हुकूक, मज़हबी जूनून, धार्मिक आस्थाएँ , आर्थिक लूट की छूट एक दूसरे को मुँह बिरा रही हैं. ९०% अन्याय का शिकार जनता अन्डे में क़ैद बाहर निकलने को बेकरार है, १०% मुर्गियां इसको सेते रहने का आडम्बर करने से अघा ही नहीं रही हैं. गरीबों की मशक्क़त ज़हीन बनियों के ऐश आराम के काम आ रही है, भूखे नंगे आदि वासियों के पुरखों के लाशों के साथ दफन दौलत बड़ी बड़ी कंपनियों के जेब में भरी जा रही है और अंततः ब्लेक मनी होकर स्विज़र लैंड के हवाले हो रही है. हजारों डमी कंपनियाँ जनता का पैसा बटोर कर चम्पत हो जाती हैं. किसी का कुछ नहीं बिगड़ता. लुटी हुई जनता की आवाज़ हमें गैर कानूनी लग रही हैं और मुट्ठी भर सियासत दानों , पूँजी पतियों, धार्मिक धंधे बाजों और समाज दुश्मनों की बातें विधिवत बन चुकी हैं. कुछ लोगों का मानना है कि आज़ादी हमें नपुंसक संसाधनों से मिली, जिसका नाम अहिंसा है. सच पूछिए तो आज़ादी भारत भूमि को मिली, भारत वासियों को नहीं. कुछ सांडों को आज़ादी मिली है और गऊ माता को नहीं. जनता जनार्दन को इससे बहलाया गया है. इनक़्लाब तो बंदूक की नोक से ही आता है, अब मानना ही पड़ेगा, वर्ना यह सांड फूलते फलते रहेंगे. 
स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि वह चीन गए थे वहां उन्हों ने देखा कि हर बच्चा गुलाब के फूल जैसा सुर्ख और चुस्त है. जहाँ बच्चे ऐसे हो रहे हों वहां जवान ठीक ही होंगे. कहते है चीन में रिश्वत लेने वाले को, रिश्वत देने वाले को और बिचौलिए को एक साथ गोली मारदी जाती है. भारत में गोली किसी को नहीं मारी जाती चाहे वह रिश्वत में भारत को ही लगादे. दलितों, आदि वासियों, पिछड़ों, गरीबों और सर्व हारा से अब सेना निपटेगी. नक्सलाईट का नाम देकर ९०% भारत वासियों का सामना भारतीय फ़ौज करेगी, कहीं ऐसा न हो कि इन १०% लोगों को फ़ौज के सामने जवाब देह होना पड़े कि इन सर्व हारा की हत्याएं हमारे जवानों से क्यूं कराई गईं? और हमारे जवानों का खून इन मजलूमों से क्यूं कराया गया? चौदह सौ साल पहले ऐसे ही धांधली के पोषक मुहम्मद हुए और बरबरियत के क़ुरआनी कानून बनाए जिसका हश्र आज यह है कि करोड़ों इंसान वक्त की धार से पीछे, खाड़ियों, खंदकों, पोखरों और गड्ढों में रुके पानी की तरह सड़ रहे हैं। वह जिन अण्डों में हैं उनके दरकने के आसार भी ख़त्म हो चुके हैं. कोई चमत्कार ही उनको बचा सकता है.  
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