Tuesday 21 June 2016

बांग-ए-दरा -12


नास्तिक और मुल्हिद 

मैं एक नास्तिक हूँ . 
दर असल नास्तिकता संसार का सब से बड़ा धर्म होता है और
 धर्म की बात ये है कि यह बहुत ही कठोर होता है, 
क्यूंकि यह उरियाँ सदाक़त अर्थात नग्न सत्य होता है.
आम तौर पर नग्नता सब को बुरी लगती है मगर परिधान बहर हाल दिखावा है, असत्य है. 
अगर परिधान सर्दी गर्मी से बचने के लिए हो तो ठीक है 
अन्यथा झूट को छुपाने के सिवा कुछ भी नहीं.. 
श्रृंगार कुछ भी हो बहर हाल वास्तविकता की पर्दा पोशी मात्र है. 
शरीर की हद तक - - इसके विरोध में आपत्तियाँ गवारा हैं 
मगर विचारों का श्रृगार बहर सूरत अधर्म है।
यह तथा कथित धर्म एवं मज़हब विचारों की सच्ची उड़ान में टोटका के रूप में बाधा बन जाते हैं 
और मानव को मानवीय मंजिल तक पहुँचने ही नहीं देते,
कुरआन इस वैचारिक परवाज़ को शैतानी वुस्वुसा कहता है। 
अगर मुहम्मद के गढे अल्लाह पर विचार उसकी कारगुजारी के बाबत की जाए 
तो उस वक़्त यह बात पाप हो जाती है, 
इस स्टेज तक विचार के परवाज़ को शैतान का अमल गुमराह करना और गुमराह होना बतलाया जाता है और इस के बाद पराश्चित करनी पड़ती है. 
इसके लिए किसी मोलवी, मुल्ला के पास जाना पड़ता है जिनके हाथों में मुसलामानों की लगाम है. 
जहाँ विचार की सीमा को लांघने पर ही पाबंदी हो 
वहां किसी विषय में शिखर छूना संभव ही नहीं. 
परिणाम स्वरूप कोई मुसलमान आज तक डेढ़ हज़ार साल होने को है, 
किसी नए ईजाद का आविष्कार नहीं किया.
ईमान दार बुद्धिजीवी तक नहीं हो पाते, जब आप अपने लिए या अपने परिवार, अपने वर्ग, अपने कौम या यहाँ तक कि अपने देश के लिए ही क्यों न हो .
असत्य को श्रृंगारित करते हैं, तो ये पाप जैसा है.
मैं इस्लाम की ज़्यादः हिस्सा बातों का विरोध करता हूँ, 
इसका मतलब यह नहीं कि बाक़ी धर्मों में बुराइयाँ नहीं. 
एक हिदू मित्र की बात मुझे साल गई कि
''आप मुसलामानों के लिए जो कर रहे हैं, सराहनीय है परन्तु अपने सीमा में ही रहें , 
हमारे यहाँ समाज सुधारक बहुतेरे हो चुके है.''
ठीक ही कहा उन्हों ने. वह हिन्दू है, 
अगर जबरन मुझे भी मुसलमान समझें तो आश्चर्य की बात नहीं 
क्यूंकि वह सिर्फ हिन्दू हैं. 
मैं सीमित हो गया क्यूंकि मुसलमानों में पैदा होना मेरी बे बसी थी, 
एक तरह से अच्छा ही हुआ कि मुसलामानों की अनचाही सेवा कर रहा हूँ.
 वह कुछ फ़ायदा उठा सके तो हमारे दूसरे मानव भाई भी लाभान्वित होंगे.
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