Sunday 26 June 2016

बांग-ए-दरा -17


बांग-ए-दरा

दर्जात ए इंसानी
अव्वल दर्जा लोग

मैं दर्जाए-अव्वल में उस इंसान को शुमार करता हूँ जो सच बोलने में ज़रा भी देर न करता हो, उसका मुतालिआ अश्याए कुदरत के बारे में फितरी हो (जिसमें खुद इंसान भी एक अश्या है.) 
वह ग़ैर जानिबदार हो, अक़ीदा, आस्था और मज़हबी उसूलों से बाला तर हो, जो जल्द बाज़ी में किए गए "हाँ" को सोच समझ कर न कहने पर एकदम न शर्माए और मुआमला साज़ हो. 
जो सब का ख़ैर ख्वाह हो, दूसरों को माली, जिस्मानी या जेहनी नुकसान, अपने नफ़ा के लिए न पहुंचाए, जिसके हर अमल में इस धरती और इस पर बसने वाली मखलूक का खैर वाबिस्ता हो, जो बेख़ौफ़ और बहादर हो और इतना बहादर कि उसे दोज़ख में जलाने वाला नाइंसाफ अल्लाह भी अगर उसके सामने आ जाए तो उस से भी दस्तो गरीबानी के लिए तैयार रहे. 
ऐसे लोगों को मैं दर्जाए अव्वल का इंसान, मेयारी हस्ती शुमार करता हूँ. 
ऐसे लोग ही हुवा करते हैं साहिबे ईमान यानी ''मरदे मोमिन
दोयम दर्जा लोग
मैं दोयम दर्जा उन लोगों को देता हूँ जो उसूल ज़दा यानी नियमों के मारे होते हैं. 
यह सीधे सादे अपने पुरखों की लीक पर चलने वाले लोग होते हैं. 
पक्के धार्मिक मगर अच्छे इन्सान भी यही लोग हैं. 
इनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि इनकी धार्मिकता समाज के लिए अब ज़हर बन गई है, इनकी आस्था कहती है कि इनकी मुक्ति नमाज़ और पूजा पाठ से है. 
अरबी और संसकृति में इन से क्या पढाया जाता है, इस से इनका कोई लेना देना नहीं। 
ये बहुधा ईमानदार और नेक लोग होते हैं. 
भोली भाली अवाम इस दर्जे की ही शिकार है ,
धर्म गुरुओं, ओलिमाओं और पूँजी पतियों की. हमारे देश की जम्हूरियत की बुनियाद 
इसी दोयम दर्जे के कन्धों पर राखी हुई है.
सोयम दर्जा लोग
हर कदम में इंसानियत का खून करने वाले, 
तलवार की नोक पर खुद को मोह्सिने इंसानियत कहलाने वाले, 
दूसरों की मेहनत पर तकिया धरने वाले, 
लफ़फ़ाज़ी और ज़ोर-ए-क़लम से गलाज़त से पेट भरने वाले, 
इंसानी सरों के सियासी सौदागर, धार्मिक चोले धारण किए हुए स्वामी, गुरू, बाबा और साहिबे रीश और बढकर ओलिमा, सब के सब तीसरे और गिरे दर्जे के लोग हैं. 
इन्हीं की सरपरस्ती में देश के मुट्ठी भर सरमाया दार भी हैं जो 
 देश को लूट कर पैसे को विदेशों में छिपाते हैं. 
यही लोग जिसका कोई प्रति शत भी नहीं बनता, दोयम दर्जे को ब्लेक मेल किए हुए है 
और अव्वल दर्जा का मजाक हर मोड़ पर उडाने पर आमादा रहते है. 
सदियों से यह गलीज़ लोग इंसान और इंसानियत को पामाल किए हुए हैं।
*****


No comments:

Post a Comment