Tuesday 28 June 2016

बांग-ए-दरा -19


बांग-ए-दरा

हलाकू  और ओलिमा 

हलाकू के समय में अरब दुन्या का दमिश्क शहर इस्लामिक माले गनीमत से खूब फल फूल रहा था. ओलिमाए दीन (धर्म गुरू)झूट का अंबार किताबों की शक्ल में खड़ा कर रहे थे. हलाकू बिजली की तरह दमिश्क पर टूटा, लूट पाट के बाद इन ओलिमाओं की खबर ली, 
सब को इकठ्ठा किया और पूछा यह किताबें किस काम आती हैं? 
जवाब था पढने के. फिर पूछा - 
सब कितनी लिखी गईं? 
जवाब- साठ हज़ार . 
सवाल - - साठ हज़ार पढने वाले ? ? फिर साठ हज़ार और लिखी जाएंगी ???. इस तरह यह बढती ही जाएंगी. 
फिर उसने पूछा तुम लोग और क्या करते हो? 
ओलिमा बोले हम लोग आलिम हैं हमारा यही काम है. 
हलाकू को हलाक़त का जलाल आ गया . हुक्म हुवा कि 
इन किताबों को तुम लोग खाओ. 
ओलिमा बोले हुज़ूर यह खाने की चीज़ थोढ़े ही है. 
हलाकू बोला यह किसी काम की चीज़ नहीं है, और न ही तुम किसी कम की चीज़ हो. 
हलाकू के सिपाहिओं ने उसके इशारे पर दमिश्क की लाइब्रेरी में आग लगा दी और सभी ओलिमा को मौत के घाट उतर दिया. 
आज भी इस्लामिक और तमाम धार्मिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर देने की ज़रुरत है.
क़ज़ज़ाक़ लुटेरे और वहशी अपनी वहशत में कुछ अच्छा भी कर गए
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बांग-ए-दरा

तलवार और कलम 

फ़तह मक्का के बाद मुसलामानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे खित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. 
पहला था तलवार का क़ला बाज़ और दूसरा था क़लम बाज़ी का क़ला बाज़. 
अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते मगर इन क़लम के बाज़ी गरों ने आलमे इंसानियत को जो नुकसान पहुँचाया है,
 उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. 
अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फरोशों ने मुहम्मद की असली तसवीर का नकशा ही उल्टा कर दिया. इन्हों ने कुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. 
यह आपस में झगड़ते हुए मुबालगा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ ) में एक दूसरे को पछाड़ते हुए, 
झूट के पुल बांधते रहे. 
कुरआन और कुछ असली हदीसों में आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियाद को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी.
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