
बांग ए दरा
देखिए किउनका अल्लाह क्या क्या कहता है - - -
''और उन देहातियों में बअज़ बअज़ ऐसा है जो कुछ वह खर्च करता है, उसको जुर्माना समझता है और तुम मुसलामानों के लिए गर्दिशों का मुंतज़िर रहता है, बुरा वक्त उन्हीं पर है और वह अल्लाह सुनते और जानते हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (98)
तो ये रही मुहम्मद के देहाती अल्लाह की देहातियों पर पकड़.
"जिन देहातियों और अन्सरियों ने खुद को अल्लाह और उसके रसूल के हवाले बमय लाल और माल हवाले करदिया है उसके लिए जन्नत में महेल हंगे जिनके नीचे नहरन बह रही होंगी."
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१००)
मुहम्मद मक्का से बद हाली में फरार होकर जब अपने साथी अबू बक्र के हमराह मदीने आए और जिस घर में पनाह लिया उस घर को बाद में वहाँ के लोगों ने मस्जिद बनवा दिया, जब कि मुहम्मद ने उसी घर से लगी ज़मीन खरीद कर मस्जिद बनवाई जिसका नाम आज तक मस्जिदे नबवी है. मुहम्मद मक्के से मदीने जब आए तो वहां के लोग बहुत खुश गवारी में थे कि मक्के का बाग़ी आ रहा है, दूसरे यह कि यहूदी और ईसाई के योरो सलम वाले मदीने में बुत परस्तों की मुखालफत करने वाला एक बुत परस्त कुरैश उनका हम नवा बन कर पैदा हुवा है. तीसरी बात ये कि मक्का हमेशा शर पसंद रहा है, मदीननियों ने ख्याल किया कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त बनेगा. इन्हीं तमाम जज़्बात को मद्दे नज़र रखतेहुए लोगों ने उस घर को भी मस्जिद बना दिया था जिस में मुहम्मद ने पहली बार क़दम रखा था, कामयाबी मिलने के बाद मुहम्मद का इस्लाम शैतानी शक्ल अख्तियार करने लगा तो यहाँ के मुसलमानों ने मुहम्मद का साथ उनके अल्लाह के मनमानी फरमान में उसकी बात की मुखालिफत की. बस मुहम्मद ने इनको कुफ्र का लक़ब दे दिया और मस्जिद को नाम दिया '' मस्जिदे ज़र्रार'' यानी ज़रर पहुँचाने वाली मस्जिद. मुहम्मद और नुकसान उठाएं? ना मुमकिन.
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