Wednesday 11 November 2015

Hadeesi Hadse 182


****
हदीसी हादसे 70
बुखारी 1245
अली ने एक कौम को जिंदा जला डाला 
"अली ने एक कौम को जिंदा जला दिया, ये बात जब उनके चचा अब्बास के कान में पड़ी तो उन्हें उनके इस फेल का 
सदमा हुवा। उन्होंने ने कहा ये सज़ा अल्लाह को ही जेबा देती है , बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे उसको क़त्ल कर देना चाहिए।" 
*शिया हज़रात ने अली मौला के इतने क़सीदे गढ़े हैं कि हिटलर का शागिर्द मौसुलेनी इनके आगे पानी भरे। उनको मिनी अल्लाह (मौला) कहते हैं, जिनकी हक़ीक़त हदीसें जगह जगह खोलती हैं कि वह घस खुद्दे थे, बुज़दिल थे, लालची थे और इन्तेहाई ज़ालिम शख्स भी थे। 
जनाब मौला ने एक कौम को जिंदा जल डाला, मुहम्मद से चार क़दम आगे। भला उस कौम की क्या गलती रही होगी ? वह कितनी बे यार ओ मदद गार रही होगी कि जालिमों के हाथों जल मरी। अली के इस अमल से बजरंग दल के दारा सिंह का वाकिया जहन में ताज़ा हो गया, जिसने कार में सोए हुए 
मिशन के एक खुदाई खिदमत गार को उसके दो बच्चों समेत जिंदा जला दिया था। एक मुसलमानों का तब्कः कहता है कि इस्लाम को फैलाने में अली का बड़ा हाथ था। इनमे से कुछ इन्हें मुहम्मद के बाद मानते हैं तो कुछ मुहम्मद से पहले. इनकी इस मज्मूम और मकरूह कार गुज़ारी के बाद लोग हज़ार इस मौला को " अली दम दम दे अन्दर " का दम भरते रहें, इनमे कोई अज़मत पैदा हो ही सकती नहीं सकती। उनकी औलादों का क्या हश्र हुवा ? शायद अली की बद आमालियों का अंजाम है कि की उनके मानने वाले चौदह सौ सालों से सीना कूबी कर कर के उनके गुनाहों की तलाफी कर रहे हैं।
मियां अब्बास कहते हैं की वह होते तो उनको जलाते ना बल्कि क़त्ल कर देते। बाप का राज हो गया था कुछ दिनों के लिए . इन इंसानियत सोज़ मज़ालिम के अंजाम में आज दुन्या की तमाम कौमों पर इन्तेकाम का भूत सवार हो चूका है। अगर ऐसा है तो कोई ताज्जुब की बात नहीं।
मैं ने माना कि वहशत का दौर था, उस वक़्त तमाम कौमें वहशत का शिकार थीं मगर कोई उनमे मुहम्मद जैसा घुटा पैगम्बरी का दावे दार नहीं हुवा जो अपना नापाक साया सैकड़ों साल तक इंसानी आबादी पर कायम रखता।
क्या मुसलमान इस बात के मुन्तजिर हैं कि अली का जवाब उनको दिया जय, जैसे कि स्पेन में हुवा, इससे पहले तर्क इस्लाम कर दें। डेनमार्क के दानिश मंद की राय मानते हुए अज़ खुद क़ुरआनी सफ़्हात को नज़रे-आतिश कर दें। 
बुख़ारी 1246
मुहम्मदी शगूफ़ा 

"मुहम्मद कहते हैं नबियों में से किसी नबी को चींटी ने काट लिया, उन्हों ने ग़ज़बनाक होकर चींटियों के दल को जला डाला। अल्लाह ने उन पर वहिय भेजी कि एक चींटी ने तुम्हें काटा , तुमने उनके पूरे जत्थे को जला डाला ,वह अल्लाह की तस्बीह कर रही थीं ."
*सिर्फ इंसान अल्लाह की इबादत और भगवानों का भजन करते हैं, कोई दूसरी मख्लूक़ नहीं। उनकी जो भी मौसीकी और संगीत होता है, वह अपने शरीक हयात को रिझाने के लिए , अपने बच्चों को इत्तेला देने के लिए या फिर अपने समूह को संबोधित करने के लिए। अल्लाह कोई हस्ती होती तो सब से पहले मखलूक हमें बाख़बर करती।
मुहम्मद की बातें हमेशा अलौकिक होती हैं जिनका वास्तविक्ता से कोई संबंध नहीं।आम मुसल्मान ऐसे अंध विश्वास को जी रहा है।

 बुख़ारी 1249 + मुस्लिम - - -किताबुल जेहाद 

मुहम्मद कहते हैं धोखे बाज़ी का नाम लड़ाई है। जंग में हीला जायज़ है।
*एक महान आत्मा की बात तो, होना चाहिए कि जंग ही नाजायज़ है मगर मुहम्मद की शररी शख्सियत क्या महान हो सकती है? जंग और इश्क में सब जायज़ है , जैसी भाषा एक पैगम्बर बोले , यह उसका नाजायज़ पैग़ाम है। 
 महान आत्मा , महात्मा गाँधी का पैगाम अहिंसा है, जो कि  एक सच्चा पैगाम।
अज़ीम मुफ़क्किर दाओ कहता है - - -
जो दूसरों को जानता है, वह ज़हीन होता है, जो खुद को पहचानता है, वह आलिम होता है।
जो दूसरों को फ़तह  करता है फ़ातेह होता है, जो खुद को फ़तेह करता है , वह अज़ीम होता है।
हमारे सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम कहाँ जगह पाते हैं ?


जीम. मोमिन 

2 comments:

  1. मैं विनम्रता पूर्वक पूछती हूँ, कि - १) मोमिन यदि मुहम्मद, इब्राहिम आदि को पयगम्बर नहीं मानते, तो किसे पयगम्बर मानते हैं ? २) मोमिनों का धर्म-ग्रन्थ कौनसा है ?

    ReplyDelete
  2. मैं विनम्रता पूर्वक पूछती हूँ, कि - १) मोमिन यदि मुहम्मद, इब्राहिम आदि को पयगम्बर नहीं मानते, तो किसे पयगम्बर मानते हैं ? २) मोमिनों का धर्म-ग्रन्थ कौनसा है ?

    ReplyDelete