Wednesday 14 October 2015

Hadeesi Hadse 178


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हदीसी हादसे 66

बुख़ारी 1280 
अबू जेहल का खात्मः
जंग ए बदर में दो अंसारी नव जवानों ने सहाबी अब्दुर रहमान से दरयाफ्त किया कि क्या वह अबू जेहल को पहचानते हैं ? अब्दुर रहमान ने कहा हाँ !नव जवानों ने कहा जब वह दिखें तो हमें बतला देना। कुछ देर बाद अबू जेहल जब उन्हें दिखे तो उन्होंने ने उन नव जवानों को इशारा करके बतला दिया। वह दोनों आनन् फानन में अबू जेहल के पास पहुँचे और उनका काम तमाम कर दिया और इस खबर को जाकर मुहम्मद को दी।
मुहम्मद ने दोनों नव जवानों से पूछा कि तुम में से किसने क़त्ल किया ? दोनों ने अपना अपना दावा पेश किया . मुहम्मद ने दरयाफ्त किया कि क्या तुमने अपनी तलवारों का खून साफ़ किया ? जवाब था नहीं . जब तलवारें देखी गईं तो सच पाई गईं। 
मुहम्मद ने इनाम के तौर पर दोनों नव जवानों को मकतूल का घोडा और साज़ ओ सामान दे दिया।
* वाज़ह हो कि अबू जेहल मुहम्मद के सगे चचा थे और क़बीला ए कुरैश के सरदार थे। उन्हों ने हमेशा मुहम्मद की मुख़ालिफ़त की और अपने क़बीले को इस्लाम न कुबूल करने दिया, हत्ता कि मुहम्मद के सर परस्त चचा अबी तालिब को भी इससे बअज़ रखा। 
"उनका नाम "अबू जेहल", जिसके मअनी होते हैं " जेहालत की अवलाद " यह इस्लाम का बख्श हुवा नाम है जो इतना बोला गया कि झूट सच हो गया।"
 इनका असली नाम "उमरू बिन हुश्शाम " था।
मुर्दा उमरू बिन हुश्शाम की दाढ़ी पकड़ के मुहम्म्द लाश से गुफ्तुगू करते हैं और अपनी बरतरीबयान करते है, फिर लाश को बदर के कुएँ में फिकवा देते हैं।
 मुहम्मद के इस कुफ्र को मुसलमानों को ओलिमा नहीं देखने और समझने देते।

मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
 मख़ज़ूमी क़बीले की एक ख़ातून को मुहम्मद ने चोरी के जुर्म में पकड़ा और ख़ुद उसका हाथ अपने हाथों से क़लम किया।
 इसके लिए लोगों ने काफ़ी कोशिश की कि ख़ातून एक मुअज़ज़िज़ क़बीले की फ़र्द थीं और चोरी बहुत मामूली थी, लोगों ने मुहम्मद के चहीते ओसामा से भी सिफ़ारिश कराई मगर मुहम्मद न म़ाने। 
बोले शरीफ़ को सज़ा न दी जायगी तो रज़ील एतराज़ करेंगे. बरहाल कसाई तबअ मुहम्मद ने उस सिन्फ़ ए नाज़ुक के हाथ कट डाले।
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बुख़ारी 1303+ मुस्लिम - - - किताबुल ईमान 
सूरज डूबने के बाद कहाँ जाता है ? 
"मुहम्मद ने अपने मुरीद अबू ज़र से एक दिन दरयाफ्त किया कि सूरज डूबने के बाद कहाँ जाता है, तुम जानते हो?
अबू ज़र का जवाब लाइल्मी का था , बोला अल्लाह या अल्लाह का रसूल ही बेहतर जानता है।
कहा यह आफ़ताब इलाही के पास जा कर सजदा करता है और तुलू होने की इजाज़त मांगता है , लेकिन क़ुर्ब क़यामत यह सजदा करने की इजाज़त तलब करेगा , न इसका सजदा क़ुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी। बल्कि हुक्म होगा जिस तरफ़ से आया है उसी तरफ़ से वापस जा। चुनाँच यह मगरिब से तुलू होगा।"
* यह झूटी फ़ितरत ख़ुद साख्ता अल्लाह के रसूल की है , जो इतने बड़े बड़े झूट गढ़ने में माहिर थे। और इन हदीस निगारों को  क्या कहा जाय , जिनकी बातों का मुसलमान हाफ़ज़ा किया करते हैं। वह बारह सौ साल पहले इतने ही  थे कि इन बातों पर गौर न करके यक़ीन कर लिया जब कि बाईस सौ साल पहले अरस्तू  सुकरात ने सूरज की छान  बीन कर लिया था।
सानेहा यह है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी मुसलमान इन बातों पर यक़ीन रखते हैं और अपने झूठे रसूल पर जान छिड़कते हैं।
जो कौम इस क़दर ज़ेहनी तौर पर दीवालिया होगी , उसका अंजाम आज के दौर में ऐसा ही होगा जैसा मुसलमानों का है। कीड़े मकोड़े की तरह मारे जाते हैं और अपने मुल्लाओं के बहकावे में आकर कहते हैं कि इस्लाम फल फूल और फैल रहा है।



जीम. मोमिन 

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