Wednesday 9 September 2015

Hadeesi Hadse 173


**********

हदीसी हादसे 61
मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद 
दो चाहने वाले 
हदीस है कि मअज़ बिन मालिक असलमी मुहम्मद के पास आए और कहा 
" या रसूल अल्लाह हमने ज़ुल्म किया अपनी जान पर और ज़िना किया। 
आप मुझको पाक कीजिए "
 मुहम्मद ने इनको फेर (लौटा) दिया। इस तरह जब वह कई बार आए तो मुहम्मद ने लोगों को इनके पीछे लगा दिया कि पता करें कि इनको कोई ख़लल तो नहीं हो गया।लोगों ने पता किया और मुहम्मद को इत्तेला दी कि वह बिलकुल ठीक हैं।
मअज़ मुहम्मद के पास फिर दरख्वास्त लेकर आए , मुहम्मद ने लोगों को फिर पता लगाने के लिए भेजा कि इन्हें कोई बीमारी तो नहीं है? 
मालूम हुवा वह इकदम मुअत्दिल हैं।
इसके बाद जब मअज़ मुहम्मद के पास आए तो उन्हों ने एक गड्ढा खुदवाया और उनको दफ़्न का हुक्म दिया .
 इसी तरह एक औरत मुहम्मद पास आई और उसने कहा या रसूल अल्लाह मैं ने ज़िना किया मुझे पाक कीजिए . 
मुहम्मद ने इसे फेर दिया , कई बार फेरने के बाद फिर वह आई तो उसने एहतेजाज किया कि मअज़ की तरह उसे क्यूं टाला जा रहा है? ख़ुदा की क़सम मैं तो ज़िना से हमला भी हूँ। मुहम्मद ने कहा , अच्छा जा बच्चा जनने के बाद आना।
 इसने बच्चा जना और उसे कपड़े में लपेट कर मुहम्मद के पास आई और खुद को पाक करने की फ़रमाइश करने लगी . 
मुहम्मद ने कहा इसको दूध पिला, जब तक यह रोटी न खाने लगे। 
कुछ दिनों बाद वह बच्चे को लेकर मुहम्मद के पास आई कि बच्चे के हाथ में रोटी का टुकड़ा था। कहा या रसूल अल्लाह बच्चा खाने लगा है, अब मुझे पाक कीजिए .
मुहम्मद ने सीने तक गहरा एक गड्ढा खुदवाया, औरत उसमे दाखिल होकर दफ़्न हुई। 
पहला पत्थर उसे खालिद ने मारा, औरत के सर से खून जारी हुवा, धार खालिद के मुंह पर पड़ी तो वह औरत को बुरा भला कहने लगे, जो मुहम्मद के कानों तक गई - - - 
कहा ख़बरदार  ख़ालिद इसने ऐसी तौबा की है कि अगर महसूल लेने वाला ऐसी तौबा करे तो इसके गुनाह मुआफ़ हो जाएँ और मअज़ की तौबा एक उम्मत में बाटी जाए तो तो काफ़ी हो।
यह एक तस्वीर मुहम्मदी दौर की थी कि लोग कितने सादा लौह थे, कि मुहम्मद के बनाए हुए क़ानून पर निसार हो जाया करते थे, जब कि मुहम्मद खुद पक्के ज़िना कार थे और लोगों से कहते थे कि अल्लाह ने उनके अगले पिछले सभी गुनाह मुआफ़ कर रखा है। 
अफ़सोस कि लोग उनकी इस बात पर भी यक़ीन करते थे।
बुख़ारी 1311
मुहम्मद ने अपनी कमसिन बीवी से सामने पुडिया छोड़ी , बैठे बैठे कहने लगे ,
"आयशा जिब्रील तुमको सलाम कहते हैं।"
वालेकुम अस्सलाम कहते हुए आयशा कहती है '
'' जो चीज़ मुझको नज़र नहीं आती, आप कैसे देखते है?"
मुहम्मद ने आयशा को कैसे समझाया इसका ज़िक्र नहीं मगर ज़रूर किसी मकर से काम लिया होगा .
यही आयशा हदीस बुखारी 1171 में कहती हैं कि ,
" इनके शौहर ख़दक से जंग कर के आए, ग़ुस्ल से फ़ारिग़ हुए ही थे कि जिब्रील अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए,
कहा या रसूल अल्लाह आपने हथ्यार खोल दिए हैं मगर मैं अभी तक बांधे हुए हूँ। 
मुहम्मद ने पूछा कहीं की जंग है?
जिब्रील ने कहा हाँ! बनू क़रीज़ा .
ग़रज़ मुहम्मद बनू क़रीज़ा की तरह निकल पड़े।
*इस हदीस में आयशा जिब्रील को देखती भी है और सुनती भी है 
अंधे बुखारी को भी दोनों हदीसों में ताजाद नज़र नहीं आया।
आयशा ने या इसके नाम से मनमानी हदीसें गढ़ी गई हैं।
देखिए कि मुसलमान इन झूटी हदीसों में कैसी झूटी ज़िन्दगी जी रहे हैं।

जीम. मोमिन 

No comments:

Post a Comment