Wednesday 4 November 2015

Hadeesi Hadse 181


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हदीसी हादसे 69

बुखारी 1250

जंग ओहद में मुहम्मद की फ़जीहत 
इस हदीस में जंग ए ओहद का मुआमला है, जिसमें मुसलमानों को शिकस्त हुई थी . हदीस तवील है , मुख़्तसर ये कि काफिरों के कमांडर अबु सुफ़ियान ने कैदियों की लश्कर को तीन बार आवाज़ लगाई कि - - -
" मुहम्मद लोगों के दरमियान अगर छुपे हों बहार आकर मेरे सामने हाज़िर हों।"
मुहम्मद को उस वक़्त जंगी क़ानून के मुताबिक बाहर आकर खुद को कमांडर के हवाले कर देना चाहिए था, मगर वह अपना मुंह छिपाए हुए भीड़ में ख़ामोश खड़े रहे । इससे साबित होता है कि वह एक ईमानदार फौजी भी नहीं थे, पैगम्बर होना तो अलग है। वह सज़ा से बच गए , इस लिए कि अबु सुफियान को उम्मीद थी कि कुरैश होने के नाते कुरैश मुहम्मद ऐसी नामर्दी का सुबूत नहीं देंगे।
अबु सुफियान ने एलान किया कि फितने और फसाद की जड़ (मुहम्मद) ख़त्म हुआ, इस तरह जंगे ए बदर का हिसाब चुकता हुवा।
*  काश कि अबु सुफियान 70 मरे हुए कैदियों का फ़रदन फ़रदन शिनाख्त कर लेता और मुहम्मद को जिंदा कैदियों से बहार लाकर उनकी पैगम्बरी का हिसाब लेता और ऐसी इबरत नाक सज़ा देता कि आगे के लिए पैगम्बरी पनाह मांगती और आज की 20% आबादी इस्लामी अज़ाबों में मुब्तिला न होती।
इसी जंग में हुन्दः जिगर खोर ने अपने शौहर के क़ातिल हमज़ा की लाश तलाश करके उसका जिगर निकाल कर कच्चा चबा गई थी।

मुस्लिम - - - किताबुल  
मुहम्मद ने कहा उन चोरों  का हाथ न काटा जाए जिनकी चोरी चौथाई दरहम से कम की हो।
* यानि चवन्नी को चोरी पर हाथ क़लम ! 
वाह !
जिहादी डाके डालने वाले मुहम्मद, किस क़दर अपने समाजी चोरों पर मेहरबान थे .
ज़ालिम मुहम्मद चवन्नी की चोरी पर एक सय्यद ज़ादी के हाथ खुद अपने हाथों से काटे जोकि रिश्ते में उनकी फूफी लगती थीं।
शब खून करबे बस्ती को लूट मार कर तबाह ओ बर्बाद करने वाले का दूसरा रूप था जो आज तक मुहज्ज़ब दुन्या में रायज है।

बुख़ारी 1253
अली का इल्म 
"किसी सहाबी ने अली से दरयाफ्त किया कि आप को कुछ ऐसे एहकाम भी  मालूम हैं जो क़ुरआन से हट कर हों ?
अली ने क़सम खाकर कहा मुझे क़ुरआन के एहकाम के सिवा कोई चीज़ मालूम नहीं या एक सहीफ़ह है जिस में तहरीर है कि कोई मुसलमान किसी काफ़िर के क़स्सास  में क़त्ल नहीं होगा ."
*शिया हजरात आम मुसलमानों से ज्यादह तालीम याफ्ता होते हैं। इनको अक्सर तकरीरों में सुनने का मौकाः मिला, कमबख्त ज़मीन और आसमान का कुलाबह मिला देते हैं। अपने ताजिराना बयान में यह लोग तमाम इंसानी क़द्रें पंजातन, मुहम्मद , फातमा , अली , हसन और हुसैन में पिरो देते हैं। यहाँ पर अली खुद तस्लीम करते हैं कि उनका इल्म कितना था। यही सोलह आना सहिह है।
 बचपन से ही अली मुहम्मद पिछ लग्गू रहे। अली के वालदैन ने उनको मुहम्मद के किफ़ालत में दे दिया था, जिनका इल्म से कोई वास्ता नहीं था . जवान होते ही अली ज़ुल्म और गारत गरी में मुब्तिला हो गए। नतीजतन मुहम्मद के आखरत के बाद से लेकर अपनी आखरत तक वह घिनावनी सियासत में पड़े रहे। पढने पढाने का मौकाः की कब मिला ? 
इनको तो शिया पीटों ने आलिम ओ फ़ाज़िल बना रख्खा है .


जीम. मोमिन 

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